________________ 150 - उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन : अपराजित सूरि ( वि० सं० की 12 वीं शताब्दी ) ने वीरासन का अर्थ 'दोनों जंघाओं में अन्तर डाल कर उन्हें फैला कर बैठना' किया है।' . आचार्य हेमचन्द्र ने बृहत्कल्प भाष्य के अर्थ को मतान्तर के रूप में स्वीकृत किया है / उनका अपना मत यह है -बाएँ पैर को दाई जंघा पर और दाएं पैर को बाई जंघा पर रख कर बैठना वीरासन है। उनके अनुसार इस मुद्रा को कुछ योगाचार्य पद्मासन भी मानते हैं / 4 पं० आशाधरजी (वि० सं० 13 वीं शताब्दी) का अर्थ आचार्य हेमचन्द्र का समर्थन करता है। आचार्य अमितगति का मत यही है। पद्मासन . - आगमोक्त आसनों में पद्मासन का उल्लेख नहीं है। पहले बताया जा चुका है कि अभयदेव सूरि पर्यङ्कासन का अर्थ पद्मासन करते हैं। आगम-काल में पद्मासन के लिए 'पर्यङ्कासन' शब्द प्रचलित रहा हो तो जैन-परम्परा में पद्मासन का बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान माना जा सकता है। इसका उल्लेख ज्ञानार्णव', अमितगति श्रावकाचार, योगशास्त्र आदि ग्रन्थों में मिलता है / अमितगति के अनुसार एक जंघा के साथ दूसरी जंघा का समभाग में जो आश्लेष १-मूलाराधना, 3 / 225, विजयोदया वृत्ति : वीरासणं-जंघे वि प्रकृष्टदेशे कृत्वासनम् / २-योगगास्त्र, 4 / 128 : सिंहासनाधिरूढस्यासनापनयने सति / तथैवावस्थितिर्या तामन्ये वीरासनं विदुः / / ३-वही, 41126 : वामोंऽह्रिर्दक्षिणोरूज़, वामोरूपरि दक्षिणः / क्रियते यत्र तद्वीरोचितं वीरासनं स्मृतम् / / ४-वही, 4126 वृत्ति : पद्मासनमित्येके। ५-मूलाराधना दर्पण, 3 / 225 : वीरासणं-ऊरूद्वयोपरि पादद्वयविन्यासः / ६-अमितगति श्रावकाचार, 8 / 47 : ऊर्वोरुपरि निक्षेपे, पादयोविहिते सति / वीरासनं जिरं कर्तुं शक्यं वीरैर्न कातरैः / / ७-ज्ञानाणव, 28 / 10 /