________________ 151 खण्ड 1, प्रकरण : 7 . .. २-योग होता है, वह पद्मासन है / ' आचार्य हेमचन्द्र के अनुसार जंघा के मध्य भाग में दूसरी जंघा का श्लेष करना पद्मासन है। सोमदेव सूरि के अनुसार जिसमें दोनों पैर दोनों घुटनों से नीचे दोनों पिण्डलियों पर रख कर बैठा जाता है, उसे पद्मासन कहते हैं / शङ्कराचार्य ने पद्मासन का अर्थ किया है-'बाएं पैर को दाई जंघा पर और दाएं और को बाई जंघा पर रख कर बैठना / " ___ गोरक्ष संहिता के अनुसार बाएं ऊरु पर दायाँ पैर और दाएं ऊरु पर बायाँ पैर रख कर दोनों हाथों को पीछे ले जा, दाएं हाथ से दाएं पैर का और बाएं हाथ से बाएं पैर का अंगूठा पकड़ कर बैठना पद्मासन है।" यह बद्ध-पद्मासन का लक्षण है। मुक्त पद्मासन में दोनों हाथों को पीछे ले जाकर अंगूठे नहीं पकड़े जाते। सोमदेव सूरि ने पद्मासन, वीरासन और सुखासन में जो अन्तर किया है, वह बहुत उपयुक्त लगता है / पद्मासन का अर्थ पहले बताया जा चुका है। जिसमें दोनों पैर दोनों घुटनों के कार के हिस्से पर रख कर बैठा जाता है अर्थात् दाई ऊरु के ऊपर बायाँ पैर १-अमितगति, श्रावकाचार, 8 / 45 : जंघाया जंघ्रया श्लेधे, समभागे प्रकीर्तितम् / पद्मासने सुखाधायि, सुसाध्यं सफलैर्जनः॥ २-योगशास्त्र, 4 / 129 जंघाया मध्यभागे तु, संश्लेषो यत्र जंघया। पद्मासन मिति प्रोक्तं, तदासन विचक्षणैः // ३-उपासकाध्ययन, 39732 : संन्यस्ताभ्यामघोज्रिभ्यामूर्वोपरि युक्तितः / भवेच्च समगुल्फाभ्यां पद्मवीरसुखासनम् // ४-पातञ्जल योगसूत्र, 246, विवरण: तत्र पद्मासनं नाम-सव्यं पादमुपसंहृत्य दक्षिणोरि निदधीत तथैव दक्षिणं, सव्यस्योपरिष्टात् / ५--गोरक्ष संहिता: वामोरूपरि दक्षिगं हि चरणं संस्थाप्य वाम तथाप्यन्योरूपरि तस्य बन्धनविधौ धृत्वा कराभ्यां दृढम् / अंगुठं हृदये निधाय चिबुकं नासाग्रमालोकरे. देतद्व्याधिविनाशकारि यमिनां पद्मासनं प्रोच्यते //