________________ 148. उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन . (5) मृतक शयन-शवासन / ' (6) ऊर्ध्व शयन- ऊँचा होकर सोना / (7) धनुरासन- पेट के बल सीधा लेट, दोनों पैरों को कार की ओर उठा, दोनों हाथों से उन्हें पकड़ लेना / पतञ्जलि ने आसन की व्याख्या की है, किन्तु उसके प्रकारों का उल्लेख नहीं किया है / भाष्यकार व्यास ने 13 आसनों का उल्लेख किया है(१) पद्मासन, (6) सोपाश्रय, (11) समसंस्थान, (2) भद्रासन, (7) पर्यङ्क, (12) स्थिरसुख और (3) वीरासन, (8) क्रौंचनिषदन, (13) यथासुख / (4) स्वस्तिकासन, (6) हस्तिनिषदन, (5) दण्डासन, (10) ऊष्ट्रनिषदन आसनों के अर्थ-भेद कुछ आसनों के अर्थ समान हैं तो कुछ एक आसनों के अर्थ समान नहीं हैं / पर्यङ्क, अर्ध-पर्यङ्क, वीरासन, उत्कटिका, हस्तिशुण्डिका, दण्डायत-इन आसनों के अर्थ विभिन्न प्रकार से उपलब्ध होते हैं। अभयदेव सूरि ( वि० सं० की ११वीं शताब्दी) ने पर्यङ्क और अर्द्ध-पर्यङ्क आसन का अर्थ क्रमशः 'पद्मासन' और 'अर्द्ध-पद्मासन' किया है। __ आचार्य हेमचन्द्र ( वि० सं० को 12 वीं शताब्दी) ने पद्मासन को पर्यङ्कासन से भिन्न माना है।४ ___ आचार्य हेमचन्द्र और अमितगति के अनुसार पर्यङ्कासन का अर्थ है-पैरों को मोड़, पिंडलियों के ऊपर जाँघों को रख कर बैठना और एक हस्ततल पर दूसरा हस्ततल जमा १-मूलाराधना दर्पण, 3 / 225 : मडयसाई-मृतकस्येव निश्चेष्टं शयनम् / २-पातञ्जल योगसूत्र, 2 / 46, भाग्य / ३-स्थानांग, 5 / 400, वृत्ति : . पर्यङ्का-जिनप्रतिमानामिव या पद्मासनमिति रूढा, तथा अर्द्धपर्यङ्काऊरावेकपाद निवेशनलक्षणेति / ४-योगशास्त्र, 4 / 125, 129 /