________________ 146 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन . . (5) सुखासन-बाएं पैर को उसके नीचे और दाएं पैर को जंघा के ऊपर रख कर बैठना। (6) पद्मासन- दाएं पैर को बाई जंघा पर और बाएं पैर को दाई जंघा पर रख कर बैठना। (7) भद्रासन- वृषण के आगे दोनों पाद-तलों को संपुट कर (सीवनी के बाएं भाग में बाएं पैर की एड़ो रख ) दोनों हाथों को कूर्म मुद्रा के आकार में स्थापित कर बैठना / / (8) गवासन-- गाय की तरह बैठना / गोनिषद्या और गवासन एक ही प्रतीत होता है। घेरण्ड संहिता में जो गो-मुखासन का उल्लेख है, वह इससे भिन्न है / अमितगति के अनुसार सावियाँ इसी आसन में बैठ कर साधुओं को वंदन किया करती थीं। (6) समपद- जंघा और कटि-भाग को समरेखा में रख कर बैठना। (10) मारमुख-दोनों पैरों को मगर-मुंह की आकृति में अवस्थित कर बैठना / 5 घेरण्ड संहिता में मकरासन का उल्लेख है / वह औंधे मुख सोकर छाती को भूमि पर टिका दोनों हाथों को फैला उनसे सिर को पकड़ कर किया जाता है। . १-यशस्तिलक, 39 / २-योगशस्त्र, 4 / 130 सम्मुटीकृत्य मुकाने, तलपादो तथोपरि / पाणिरुच्छपिका कुर्यात्, यत्र भद्रासनं तु तत् // 3 अमितगति श्रावकाचार, 8 / 48 : गवासनं जिनरुक्तमार्याणां यतिवंदने। ४-मूलाराधना, 3 / 224, विजयोदया वृत्ति : समपदं-स्फिपिंडसमकरणेनासनम् / ५-वही, 33224, विजयोदया, वृत्ति : मकरस्य मुख मिव कृत्वा पावाववस्थानम् /