________________ खण्ड : 1, प्रकरण : 7 २-योग 145 ___ इनमें उत्कटिका और गोदोहिका नहीं हैं। उनके स्थान पर हस्तिशुण्डिका और गोनिषद्यका हैं / यह परिवर्तन परम्परा-भेद का सूचक है। ___ स्थानांग, औपपातिक, बृहत्कल्प, दशाश्रुतस्कंध आदि आगमों में वीरासन, दण्डायत, आम्रकुब्जिका तथा उत्तरवर्ती ग्रन्थों में वज्रासन, सुखासन, पद्मासन, भद्रासन, शवासन, समपद, मकरमुख, हस्तिशुण्डि, गोनिषद्या, कुक्कुटासन आदि आसन भी उपलब्ध होते हैं।' . (1) वीरासन- कुर्सी पर बैठने से शरीर की जो स्थिति होती है, उस स्थिति में कुर्सी के बिना स्थित रहना। (2) दण्डायत-- दण्ड की भाँति लम्बा हो कर पैर पसार कर बैठना। (3) आम्रकुब्जिका- आम्र-फल की भाँति टेढ़ा होकर बैठना / 2 . (4) वज्रासन- __बाएं पैर को दाई जाँघ पर और दाएं पैर को बाई जाँघ पर रख कर हाथों को वज्राकार रूप में पीछे ले जाकर पैरों - के अंगूठे पकड़ना / यह बद्धपद्मासन जैसी स्थिति है। १-(क) मूलाराधना, 32324-225 : समपलियंकणिसेज्जा, गोदोहिया य उक्कुडिया। मगरमुह हस्थिसुंडी, गोणणिसेज्जद्धपलियंका // वीरासणं च दंडा य,........." (ख) ज्ञानार्णव, 28 / 10: पर्यङ्क मद्धेपयेङ्क, वज्रवीरासनं तथा / सुखारविन्दपूर्वे च, कायोत्सर्गश्च सम्मतः // (ग) योगशास्त्र, 4 / 124 : पर्यवीर-वज्राब्ज-भद्र-दण्डासनानि च। . उत्कटिका गोदोहिका कायोत्सर्गस्तथासनम् // (घ) अमितगति श्रावकाचार, 8 / 45-48 / (ङ) मूलाराधना, अमितगति, 3 / 223-224 : समस्फिगं समस्फिक्कं, कृत्यं कुक्कुटकासनम् / बहुधेत्यासनं साधोः कायक्लेश विधायिनः // कोदण्डलगडादण्ड, शवशय्यापुरस्सरम् / कर्तव्या बहुधा शय्या, शरीरक्लेशकारिणा // २-प्रवचनसारोद्धार, गाथा 584 वृत्ति : आम्रकुब्जो वा आम्रफलवद् वक्राकारेणावस्थितः / ३-योगशास्त्र, 4.127 /