________________ खण्ड : 1, प्रकरण : 7.... .....२-योग. अपरिग्रह-महाव्रत (1) मनोज्ञ और अमनोज्ञ शब्द में समभाव / (2) मनोज्ञ और अमनोज्ञ रूप में समभाव / (3) मनोज्ञ और अमनोज्ञ गन्ध में समभाव / (4) मनोज्ञ और अमनोज्ञ रस में समभाव / (5) मनोज्ञ और अमनोज्ञ स्पर्श में समभाव / धर्म्य-ध्यान की चार अनुप्रेक्षाएँ हैं- (1) एकत्व, (3) अशरण और (2) अनित्य, (4) संसार / ' शुक्ल-ध्यान की चार अनुप्रेक्षाएं हैं (1) अनन्तवर्तिता-भव-परम्परा अनन्त है, (2) विपरिणाम- वस्तु विविध रूपों में परिणत होती रहती है, (3) अशुभ- संसार अशुभ है और (4) अपाय- जितने आश्रव हैं, बन्धन के हेतु हैं, वे सब मूल दोष हैं। इनमें से धर्म्य-ध्यान की चार अनुप्रेक्षाएँ बारह भावनाओं के वर्ग में संग्रहीत हैं। बारह भावनाएं इस प्रकार हैं(१) अनित्य (7) आश्रव .. (2) अशरण (8) संवर (3) संसार (6) निर्जरा . .. (4) एकत्व (5) अन्यत्व (11) बोधि-दुर्लभ (6) अशुद्धि (12) धर्म चार भावनाएं (1) मैत्री . (2) प्रमोद (3) कारुण्य (4) माध्यस्थ्य इन भावनाओं के अभ्यास से मोह-निवृत्ति होती है और सत्य की उपलब्धि होती (10) लोक १-स्थानांग, 4 / 1 / 247 / - २-वही, 412247 /