________________ 140 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन है / भगवान् महावीर ने कहा-"जिसकी आत्मा भावना-योग से शुद्ध है, वह जल में नौका के समान है, वह तट को प्राप्त कर सब दुःखों से मुक्त हो जाता है।" आगमों में इनका प्रकीर्ण रूप इस प्रकार हैअनित्य-भावना __धीर पुरुष को मुहूर्त-भर भी प्रमाद नहीं करना चाहिए / अवस्था बीती जा रही है। यौवन चला आ रहा है / 2 . अशरण-भावना सगे-सम्बन्धी तुम्हारे लिए त्राण नहीं हैं और तुम भी उनके लिए त्राण नहीं हो / ' संसार-भावना इस जन्म-मरण के चक्कर में एक पलक-भर भी सुख नहीं है / एकत्व-भावना आदमी अकेला जन्मता है और अकेला मरता है। उसकी संज्ञा, विज्ञान और वेदना भी व्यक्तिगत होती है / अन्यत्व-भावना - काम-भोग मुझसे भिन्न हैं और मैं उनसे भिन्न हूँ। पदार्थ मुझसे भिन्न हैं और मैं उनसे भिन्न हूँ। अशौच-भावना यह शरीर अपवित्र है, अनेक रोगों का आलय है। . :-सूत्रकृताङ्ग, 1115 / 5 : भावणाजोगसुद्धप्पा जले णाशव आहिया / नावा व तीरसंपन्ना सव्वदुक्खा तिउट्टइ // २-(क) आचारांग, 1 / 2 / 1 / (ख) उत्तराध्ययन, 13 // 31 / ३-(क) उत्तराध्ययन, 6 / 3 / (ख) आचारांग, 112 / 1 / ४-उत्तराध्ययन, 19 / 74 / ५-वही, 18:14-15 / ६-सूत्रकृतांग, 2 / 1 / 13 / ७-उत्तराध्ययन, 1027 //