________________ उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन को भी लाभान्वित करता है। अन्तिम चार से व्यक्ति दूसरों की सहायता कर संघ को शक्तिशाली बनाता है। दर्शन-विहीन व्यक्ति के ज्ञान नहीं होता, ज्ञान के बिना चारित्र नहीं होता, चारित्र के बिना मोक्ष नहीं होता और मोक्ष के बिना निर्वाण नहीं होता।' दर्शन सम्पन्न व्यक्ति भव-परम्परा का अंत पा लेता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि भगवान महावीर ने दर्शन को उतना ही महत्त्व दिया, जितना ज्ञान और चारित्र को। इसीलिए हम जैन-दर्शन को केवल श्रद्धा ( या भक्ति ) योग का समर्थक नहीं कह सकते। (3) चारित्र की साधना के पाँच अंग है-- (1) सामायिक / (2) छेदोपस्थापन / (3) परिहारविशुद्धीय। (4) सूक्ष्मसंपराय। (5) यथाख्यात / चारित्र सम्मन्न व्यक्ति स्थिर बनता है। भगवान महावीर ने चारित्र को ज्ञान और दर्शन का सार कहा है। जैन-दर्शन केवल चारित्र-कर्म योग का समर्थक नहीं हैं। (1) तप की साधना के बारह अंग है(१) अनशन / 6 ऊनोदरी। (3) भिक्षाचरी। (4) रस-परित्याग। (5) काय-क्लेश। (6) संलीनता (विविक्त-शयनासन) (7) प्रायश्चित्त / १-उत्तराध्ययन, 28 / 30 / २-वही, 29 / 60 / ३-वही, 28132-33 / ४-वही, 29 / 61 / ५-उत्तराध्ययन 308,30 / ६-उत्तराध्ययन के टिप्पण, 30112,13 का टिप्पण / ७-उत्तराध्ययन के टिप्पण, 30 / 25 का टिप्पण। .