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________________ खण्ड 1, प्रकरण : 7 १-साधना-पद्धति 135 पाँचवाँ आधार है-उपबृहण / संगठन की आत्मा है---गुण या विशेषता। गुण और अवगुण-ये दोनों मनुष्य के सहचारी हैं। गुण की वृद्धि और अवगुण का शोधन करना संगठन के लिए बहुत ही आवश्यक होता है / पर इसमें बहुत सतर्कता बरती जानी चाहिए। अवगण का प्रतिकार होना चाहिए पर उसे प्रसारित कर संगठन के सामने जटिलता पैदा नहीं करनी चाहिए / गुण का विकास करना चाहिए पर उसके प्रति ईर्ष्या या उन्माद न हो, ऐसी सजगता रहनी चाहिए। इसी सूत्र के आधार पर यह विचार विकसित हुआ था कि जो एक साधु की पूजा करता है, वह सब साधुओं की पूजा करता है यानि साधुता की पूजा करता है। जो एक साधु की अवहेलना करता है, वह सब साधुओं की अवहेलना करता है यानि साधुता की अवहेलना करता है। संगठन का छठा आधार है-स्थिरीकरण / अनेक लोगों का एक लक्ष्य के प्रति आकृष्ट होना भी कठिन है और उससे भी कठिन है, उस पर टिके रहना / आन्तरिक और बाहरी ऐसे दबाव होते हैं कि आदमी दब जाता है। शारीरिक और मानसिक ऐसी परिस्थितियाँ होती हैं कि आदमी पराजित हो जाता है / तब वह लक्ष्य को छोड़ कर दूर भागना चाहता है / उस समय उसे लक्ष्य में फिर से स्थिर करना संगठन के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। स्थिरीकरण के हेत अनेक हो सकते हैं। उनमें सबसे बडा हेतु है वात्सल्य और यही सातवाँ आधार है / सेवा और संविभाग इसी सूत्र पर विकसित हुए हैं। भगवान् ने कहा--"असंविभागी को मोक्ष नहीं मिलता। जो संविभाग को नहीं जानता, वह अपने आपको अनगिन बंधनों में जकड़ लेता है, फिर मुक्ति की कल्पना कहाँ ?" इसी सूत्र के आधार पर उत्तरवर्ती आचार्यो ने भगवान् के मुँह से कहलाया कि जो रोगी साधु को सेवा करता है, वह मेरी सेवा करता है और एकात्मता की भाषा में गाया गया"भिन्न-भिन्न देश में उत्पन्न हुए, भिन्न-भिन्न आहार से शरीर बढ़ा किन्तु जैसे ही वे जिन-शासन में आए, वैसे ही सब भाई हो गए !" यह भाईचारा और सेवाभाव ही संगठन की सुदृढ़ आधार-शिला है। - आठवाँ आधार है प्रभावना। वही संगठन टिक सकता है जो प्रभावशाली होता है। लक्ष्य पूर्ति के साधनों को प्रभावशाली बनाए रखे बिना उनकी ओर किसी का झुकाव ही नहीं होता। दूसरों के मन को भावित करने की क्षमता रखने वाले ही संगठन को प्रभावशाली बना सकते हैं। विद्या, कला, कौशल, वक्तृत्व आदि शक्तियों का विकास और पराक्रम सहज ही जन-मानस को प्रभावित कर देता है। संगठन के लिए ऐसे पारगामी व्यक्ति भी सदा अपेक्षित होते हैं। * संगठन के लिए जो आठ आधार भगवान् ने बताए, उनमें से पहले चार वैयक्तिक / हैं। कोई भी व्यक्ति उनसे अपनी आत्मा की सहायता करता है और साथ-साथ संघ
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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