________________ 112 उतराध्ययन : एक समोक्षात्मक अध्ययन प्रमुख विहार-क्षेत्र बन गया था। जैन-आगमों की भाषा महाराष्ट्री प्राकृत से बहुत प्रभावित है। कुछ विद्वानों ने प्राकृत भाषा के एक रूप का 'जैन महाराष्ट्री प्राकृत' ऐसा नाम रखा है। ईसा की आठवीं-नौवीं शताब्दी में विदर्भ पर चालुक्य राजाओं का शासन था। दसवीं शताब्दी में वहाँ राष्ट्रकूट राजाओं का शासन था। ये दोनों राज-वंश जैन-धर्म के पोषक थे। उनके शासन-काल में वहाँ जैन-धर्म खूब फला-फूला। नर्मदा-तट . नर्मदा-तट पर जैन-धर्म के अस्तित्व के उल्लेख पुराणों में मिलते हैं। वैदिक-आर्यों से पराजित होकर जैन-धर्म के आसक अपुर लोग नर्मदा के तट पर रहने लगे।' कुछ काल बाद वे उत्तर भारत में फैल गए थे। हैहय-वंश की उत्पत्ति नर्मदा-तट पर स्थित माहिष्मती के राजा कार्तवीर्य से मानी जाती है / भगवान् महावीर का श्रमणोपासक चेटक हैहय-वंश का ही था / 3 दक्षिण भारत दक्षिण भारत में जन-धर्म का प्रभाव भगवान् पार्श्व और महावीर से पहले ही था। जिस समय द्वारका का दहन हुआ था, उस समय भगवान् अरिष्टनेमि पल्हव देश में थे। 4. वह दक्षिणापथ का ही एक राज्य था। उत्तर भारत में जब दुर्भिक्ष हुआ, तब भद्रबाहु दक्षिण में गए। यह कोई आकस्मिक संयोग नहीं; किन्तु दक्षिण भारत में जैन-धर्म के सम्पर्क का सूचन है। मध्यकाल में भी कलभ, पाण्ड्य, चोल, पल्लव, गंग, राष्ट्रकूट, कदम्ब आदि राज-वंशों ने जैन-धर्म को बहुत प्रसारित किया था। ईसा की सातवीं शताब्दी के पश्चात् बंगाल और बिहार आदि पूर्वी प्रान्तों में जैनधर्म का प्रभाव क्षीण हुआ। उसमें भी विदेशी आक्रमण का बहुत बड़ा हाथ है / दुर्भिक्ष के कारण साधुओं का विहार वहाँ कम हुआ, उससे भी जैन धर्म को क्षति पहुंची। १-पद्मपुराण, प्रथम सृष्टि खण्ड, अध्याय 12, श्लोक 412 : नर्मदासरितं प्राप्य, 'स्थिताः दानवसत्तमाः / २-एपिग्राफिका इण्डिका, भाग 2, पृ० 8 / ३-त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, पर्व 10, सर्ग 6, श्लोक 226 / ४-(क) हरिवंशपुराण, सर्ग 64, श्लोक 1 / (ख) सुखबोधा, पत्र 39 /