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________________ खण्ड : 1, प्रकरण : 5 ५-जैन-धर्म-हिन्दुस्तान के विविध अंचलों में 103 संस्कृति एक विश्व-शक्ति बन गई और आर्यावर्त का प्रभाव भारतवर्ष की सीमाओं के बाहर तक पहुँच गया। अशोक की तरह उसके पौत्र ने भी अनेक इमारतें बनवाई। राजपूताना की कई जैन रचनाएँ उसके समय की कही जाती हैं। कुछ विद्वानों का अभिमत है कि जो शिला-लेख अशोक के नाम से प्रसिद्ध हैं, वे सम्राट सम्प्रति ने लिखवाए थे। सुप्रसिद्ध ज्योतिर्विद् श्री सूर्यनारायण व्यास ने एक बहुत खोजपूर्ण लेख द्वारा यह प्रमाणित किया है कि सम्राट अशोक के नाम के लेख सम्राट् सम्प्रति के हैं।' सम्राट अशोक ने शिला-लेख लिखवाए हों और उन्हीं के पौत्र तथा उन्हों के समान धर्म-प्रचार-प्रेमी सम्राट सम्प्रति ने शिला-लेख न लिखवाए हों, यह कल्पना नहीं की जा सकती। एक बार फिर सूक्ष्म-दृष्टि से अध्ययन करने की आवश्यकता है कि अशोक के नाम से प्रसिद्ध शिला-लेखों में कितने अशोक के हैं और कितने सम्प्रति के ? बंगाल राजनीतिक दृष्टि से प्राचीन-काल में बंगाल का भाग्य मगध के साथ जुड़ा हुआ था। नन्दों और मौर्यों ने गंगा की उस नीचली घाटी पर अपना स्वत्व बनाए रखा। कुषाणों के समय में बंगाल उनके शासन से बाहर रहा, परन्तु गुप्तों ने उस पर अपना अधिकार फिर स्थापित किया। गुप्त साम्राज्य के पतन के पश्चात् बंगाल में छोटे छोटे अनेक राज्य उठ खड़े हुए। - मुनि कल्याणविजयजी के अनुसार प्राचीन-काल में बंग शब्द से दक्षिण बंगाल का ही बोध होता था, जिसकी राजधानी 'ताम्रलिप्ति' थी, जो आज कल तामलुक नाम से प्रसिद्ध है। बाद में धीरे-धीरे बंगाल की सीमा बढ़ी और वह पाँच भागों में भिन्न-भिन्न नामों से पहिचाना जाने लगा-बंग ( पूर्वी बंगाल ), समतट ( दक्षिणी बंगाल ), राढ अथवा कर्ण सुवर्ण ( पश्चिमी बंगाल ), पुण्ड्र ( उत्तरी बंगाल ), कामरूप ( आसाम ) / " भगवान् महावीर वज्रभूमि ( वीर भूमि ) में गए थे। उस समय वह अनार्य प्रदेश कहलाता था। उससे पूर्व बंगाल में भगवान् पार्श्व का धर्म ही प्रचलित था। वहाँ बौद्धधर्म का प्रचार जन-धर्म के बाद में हुआ। वैदिक-धर्म का प्रवेश तो वहाँ बहुत बाद में १-भारतीय इतिहास की रूपरेखा, जिल्द 2, पृ० 696-697 / २-जैन इतिहास की पूर्व पीठिका और हमारा अभ्युत्थान, पृ० 66 / ३-नागरी प्रचारिणी। ४-प्राचीन भारत का इतिहास, पृ० 265 / ५-श्रमण भगवान् महावीर, पृ० 386 !
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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