________________ 102 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन अशोक के उत्तराधिकारी उनके पौत्र सम्प्रति थे। कुछ इतिहासज्ञ उनका उत्तराधिकारी उनके पुत्र कुणाल (सम्प्रति के पिता) को ही मानते हैं / जिनप्रभ सूरि के अनुसार मौर्य-वंश की राज्यावलि का क्रम इस प्रकार है (1) चन्द्रगुप्त / (2) बिन्दुसार। (3) अशोकश्री। (4) कुणाल / (5) सम्प्रति / किन्तु कुछ जैन लेखकों के अनुसार कुणाल अन्धा हो गया था, इसलिए उसने अपने पुत्र सम्प्रति के लिए ही सम्राट अशोक से राज्य माँगा था / सम्राट सम्प्रति को 'परम आर्हत्' कहा गया है। उन्होंने अनार्य-देशों में श्रमणों का विहार करवाया था। भगवान् महावीर के काल में विहार के लिए जो आर्य-क्षेत्र की सीमा थी, वह सम्प्रति के काल में बहुत विस्तृत हो गई थी। साढे पच्चीस देशों को आर्य-क्षेत्र मानने की बात भी सम्भवतः सम्प्रति के बाद ही स्थिर हुई होगी। ___सम्राट सम्प्रति को भरत के तीन खण्डों का अधिपति कहा गया है। जयचन्द्र विद्यालंकार ने लिखा है-“सम्प्रति को उज्जैन में जैन आचार्य सुहस्ती ने अपने धर्म की दीक्षा दी। उसके बाद सम्प्रति ने जैन-धर्म के लिए वही काम किया जो अशोक ने बौद्ध-धर्म के लिए किया था। चाहे चन्द्रगुप्त के और चाहे सम्प्रति के समय में जैन-धर्म की बुनियाद तामिल भारत के नए राज्यों में भी जा जमी, इसमें संदेह नहीं। उत्तरपश्चिम के अनार्य-देशों में भी सम्प्रति के समय जैन-प्रचारक भेजे और वहाँ जैन-साधुओं के लिए अनेक विहार स्थापित किए गए। अशोक और सम्प्रति दोनों के कार्य से आर्य १-भारतीय इतिहास की रूपरेखा, जिल्द 2, पृ० 696 : २-विविधतीर्थकल्प, पृ० 69 / / तत्रैव च चाणिक्यः सचिवो नन्दं समूलमुन्मूल्य मौर्यवंश्यं श्रीचन्द्रगुप्तं न्यवीशद्विशांपतित्वे / तवंशे तु बिन्दुसारोऽशोकश्री:कुणालस्तत्सूनुस्त्रिखण्डभारताधिपः परमाहतोऽनार्यदेशेष्वपि प्रवर्तितश्रमणविहारः सम्प्रतिमहाराजश्चाभवत् // ३-विशेषावश्यक भाष्य, पृ० 276 / ४-विविधतीर्थकल्प, पृ० 69 / ५-बृहत्कल्प भाष्य वृत्ति, भाग 3, पृ० 907 : 'ततः परं' बहिर्देशेषु अपि सम्प्रतिनृपतिकालादारभ्य यत्र ज्ञान-दर्शन चारित्राणि 'उत्सर्पन्ति' स्फातिमासादयन्ति तत्र विहर्त्तव्यम् /