________________ 100 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन ५-जैन-धर्म-हिन्दुस्तान के विविध अंचलों में विहार - भगवान् महावीर के समय में उनका धर्म प्रजा के अतिरिक्त अनेक राजाओं द्वारा भी स्वीकृत था। वृज्जियों के शक्तिशाली गणतंत्र के प्रमुख राजा चेटक भगवान् महावीर के श्रावक थे। वे पहले से ही जैन थे। वे भगवान् पार्श्व की परम्परा को मान्य करते थे / ' वृज्जी गणतंत्र की राजधानी 'वैशाली' थी। वहाँ जैन-धर्म बहुत प्रभावशाली था। मगध सम्राट श्रेणिक प्रारम्भ में बुद्ध का अनुयायी था। अनाथी मुनि के सम्पर्क में आने के पश्चात् वह निम्रन्थ धर्म का अनुयायी हो गया था। इसका विशद वर्णन उत्तराध्ययन के बीसवें अध्ययन में है। श्रेणिक की रानी चेल्लणा चेटक की पुत्री थी। यह श्रेणिक को निर्ग्रन्थ-धर्म का अनुयायी बनाने का सतत प्रयत्न करती थी और अन्त में उसका प्रयत्न सफल हो गया। मगध में भी जैन-धर्म प्रभावशाली था। श्रेणिक का पुत्र कूणिक भी जैन था / जैन-आगमों में महावीर और कूणिक के अनेक प्रसंग हैं। मगध शासक शिशनाग-वंश के बाद नन्द-वंश का प्रभुत्व बढ़ा। प्रसिद्ध इतिहासज्ञ रायचौधरी के अनुसार नन्द-वंश का राज्य बम्बई के सुदूर दक्षिण गोदावरी तक फैला हुआ था। उस समय मगध और कलिंग में जैन-धर्म का प्रभुत्व था ही, परन्तु अन्यान्य प्रदेशों में भी उसका प्रभुत्व बढ़ रहा था। डॉ. राधाकुमुद मुकर्जी के अनुसार "जैन-ग्रन्थों को भी नौ नन्दों का परिचय है ( आवश्यक सूत्र, पृ० ६६३---नवमे नन्दे ) / उनमें भी नन्द को वेश्या के गर्भ से उत्पन्न 'नापित-पुत्र' कहा है ( वही, पृ० ८६०-नापितदास'''राजा जातः) परन्तु उदायि और नौ नन्दों के बीच के राजा उन्रोंने छोड़ दिये। संभवतः उन्हें नगण्य समझकर नहीं लिया। _ "जैन-धर्म के प्रति नन्दों के झुकाव का कारण संभवतः उसकी जाति थी। पहले नंद को छोड़कर और नंदों के विरुद्ध जैन-ग्रन्थों में कुछ नहीं कहा है। नंद राजाओं के मंत्री १-उपदेशमाला, गाथा 92 : वेसालीए पुरीए सिरिपास जिणेससासणसणाहो। हेहयकुलसंभूओ चेडगनामा निवो आसि // २-दीघनिकायो (पढमो भागो), पृ० 135 : समणं खलु भो गोतम राजा मागधो सेनियो बिम्बिसारो सपुत्तो सभारियो सपरिसो सामच्चो पाणेहि सरणं गतो। ३-स्टडीज इन इन्डियन एन्टीक्वीटीज, पृ० 215 /