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________________ उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन जी० एफ० मूर के अनुसार ईसा से पूर्व ईराक, शाम और फिलिस्तीन में जैन-मुनि और बौद्ध भिक्षु सैकड़ों की संख्या में चारों ओर फैले हुए थे। पश्चिमी एशिया, मिश्र, यूनान और इथियोपिया के पहाड़ों और जंगलों में उन दिनों अगणित भारतीय-साधु रहते थे, जो अपने त्याग और अपनी विद्या के लिए प्रसिद्ध थे। ये साधु वस्त्रों तक का परित्याग किए हुए थे।' इस्लाम-धर्म के कलन्दरी तबके पर जैन-धर्म का काफी प्रभाव पड़ा था। कलन्दर चार नियमों का पालन करते थे - साधुता, शुद्धता, सत्यता और दरिद्रता / वे अहिंसा पर अखण्ड विश्वास रखते थे।२ ___यूनानी लेखक मिस्र, एबीसीनिया, इथ्यूपिया में दिगम्बर-मुनियों का अस्तित्व बताते हैं / __आर्द्र देश का राजकुमार आर्द्र भगवान् महावीर के संघ में प्रवजित हुआ था। अरबिस्तान के दक्षिण में ‘एडन' बंदर वाले प्रदेश को 'आद्र-देश' कहा जाता था।" कुछ विद्वान् इटली के एडियाटिक समुद्र के किनारे वाले प्रदेश को आद्र-देश मानते हैं।६।। बेबीलोनिया में जैन-धर्म का प्रचार बौद्ध-धर्म का प्रसार होने से पहले ही हो चुका था। इसकी सूचना बावेरु-जातक से मिलती है। इन-अन नजीम के अनुसार अरबों के शासन-काल में यहिया इब्न खालिद बरमकी ने खलीफा के दरबार और भारत के साथ अत्यन्त गहरा सम्बन्ध स्थापित किया। उसने बड़े अध्यवसाय और आदर के साथ भारत के हिन्दू, बौद्ध और जैन विद्वानों को निमंत्रित किया। ___ इस प्रकार मध्य एशिया में जैन-धर्म या श्रमण-संस्कृति का काफी प्रभाव रहा था। उससे वहाँ के धर्म प्रभावित हुए थे / वानक्रेमर के अनुसार मध्य-पूर्व में प्रचलित 'समानिया' सम्प्रदाय 'श्रमण' शब्द का अपभ्रंश है। . १-हुकमचन्द अभिनन्दन ग्रन्थ, पृ० 374 / २-वही, पृ० 374 / ३-एशियाटिक रिसर्चेज, भाग 3, पृ० 6 / ४-सूत्रकृतांग, 216 / ५-प्राचीन भारतवर्ष, प्रथम भाग, पृ० 265 / ६-वही, प्रथम भाग, पृ० 265 / ७-बावेरु जातक, (सं० 336), जातक खण्ड 3, पृ० 289-291 / ८-हुकमचन्द अभिनन्दन ग्रन्थ, पृ० 375 / ९-वही, पृ० 374 /
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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