________________ 67 खण्ड: 1, प्रकरण :5 ४-विदेशों में जैन-धर्म सकता / भगवान् अरिष्टनेमि दक्षिणापथ के मलय देश में गए थे।' जब द्वारका-दहन हुआ था तब अरिष्टनेमि पल्हव नामक अनार्य-देश में थे / 2 भगवान् पार्श्वनाथ ने कुरु कौशल, काशी, सुम्ह, अवन्ती, पुण्ड, मालव, अंग, बंग, कलिंग, पांचाल, मगध, विदर्भ, भद्र, दशार्ण, सौराष्ट्र, कर्णाटक, कोंकण, मेवाड़, लाट, द्राविड़, काश्मीर, कच्छ, शाक, पल्लव, वत्स, आभीर आदि देशों में विहार किया था / दक्षिण में कर्णाटक, कोंकण, पल्लव, द्राविड़ आदि उस समय अनार्य माने जाते थे। शाक भी अनार्य प्रदेश है। इसकी पहिचान शाक्य-देश या शाक्य-द्वीप से हो सकती है / शाक्य भूमि नेपाल की उपत्यका में है। वहाँ भगवान् पार्श्व के अनुयायी थे। भगवान् बुद्ध का चाचा स्वयं भगवान् पार्श्व का श्रावक था / शाक्य-प्रदेश में भगवान् का विहार हुआ हो, यह बहुत संभव है। भारत और शाक्य-प्रदेश का बहुत प्राचीन-काल से सम्बन्ध रहा है। भगवान् महावीर वज्रभूमि, सुम्हभूमि, दृढभूमि आदि अनेक अनार्य-प्रदेशों में गए थे। वे बंगाल की पूर्वीय सीमा तक भी गए थे। उत्तर-पश्चिम सीमा-प्रान्त एवं अफगानिस्तान में विपुल संख्या में जैन-श्रमण विहार करते थे / ___ जैन-श्रावक समुद्र पार जाते थे। उनकी समुद्र-यात्रा और विदेश-व्यापार के अनेक प्रमाण मिलते हैं / लंका में जैन-श्रावक थे, इसका उल्लेख बौद्ध-साहित्य में भी मिलता है। महावंश के अनुसार ई० पू० 430 में जब अनुराधापुर बसा, तब जैन-श्रावक वहाँ विद्यमान थे। वहाँ अनुराधापुर के राजा पाण्डुकाभय ने ज्योतिय निग्गंठ के लिए घर बनवाया। उसी स्थान पर गिरि नामक निग्गंठ रहते थे। राजा पाण्डुकाभय ने कुम्भण्ड निगंठ के लिए एक देवालय बनवाया था।६ जैन-श्रमण भी सुदूर देशों तक विहार करते थे। ई० पू० 25 में पाण्ड्य राजा ने अगस्टस सीजर के दरबार में दूत भेजे थे। उनके साथ श्रमण भी यूनान गए थे। १-हरिवंशपुराण, सग 59, श्लोक 112 / २-सुखबोधा, पत्र 36 / ३-सकलकीर्ति, पाश्वनाथ चरित्र, 15176-85 ; 23 // 17-19 / ४-अंगुत्तरनिकाय की अट्ठकथा, भाग 2, पृ० 559 / / ५-(क) जनरल ऑफ दी रायल एशियाटिक सोसाइटी, जनवरी 1985 / (ख) एन्शियन्ट ज्योग्रफी ऑफ इन्डिया, पृ० 617 / ६-महावंश, परिच्छेद 10, पृ० 55 / ७-इंडियन हिस्टोरीकल क्वाटी, भाग 2, पृ० 293 /