________________ उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन रुक्षत्र किन्तु भगवान महावीर ने साधुओं के विहार के लिए आर्य-क्षेत्र की जो सीमा की, वह उक्त सीमा से छोटी है---- (1) पूर्व दिशा में अंग और मगध (2) दक्षिण दिशा में कौशाम्बी (3) पश्चिम दिशा में स्थूणा-कुरुक्षेत्र (4) उत्तर दिशा में कुणाल देश' . इस विहार-सीमा से यह प्रतीत होता है कि जैनों का प्रभाव-क्षेत्र मुख्यत: यही था। महावीर के जीवन-काल में ही संभवत: जैन-धर्म का प्रभाव क्षेत्र विस्तृत हो गया था। विहार की यह सीमा तीर्थ-स्थापना के कुछ वर्षों बाद ही की होगी। जीवन के उत्तरकाल में भगवान् महावीर स्वयं अवन्ति (उज्जन) सिन्धु, सौवीर आदि प्रदेशों में गए थे। हरिवंशपुराण के अनुसार भगवान् महावीर बाल्हीक (बैक्ट्यिा , बलख), यवन (यूनान), गांधार (आधुनिक अफगानिस्तान का पूर्वी भाग), कम्बोज (पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त) में गए थे। बंगाल की पूर्वीय सीमा (संभवतः बर्मी सरहद) तक भी भगवान् के बिहार की संभावना की जाती है / ४-विदेशों में जैन-धर्म जैन-साहित्य के अनुसार भगवान् ऋषभ, अरिष्टनेमि, पाव और महावीर ने अनार्यदेशों में विहार किया था। मूत्रकृतांग के एक श्लोक से अनार्य का अर्थ 'भाषा-भेद' भी फलित होता है।" इस अर्थ की छाया में हम कह सकते हैं कि चार तीर्थङ्करों ने उन देशों में भी विहार किया, जिनकी. भाषा उनके मुख्य विहार-क्षेत्र की भाषा से भिन्न थी। भगवान् ऋषभ ने बहलो (बेक्ट्यिा , बलख), अडंबइल्ला (अटकप्रदेश), यवन (यनान), सुवर्णभूमि (सुमात्रा), पण्हव आदि देशों में विहार किया। पण्हव का सम्बन्ध प्राचीन पार्थिया (वर्तमान ईरान का एक भाग) से है या पल्हव से, यह निश्चित नहीं कहा जा १-बृहत्कल्प, भाग 3, पृ० 905 / २-हरिवंशपुराण, सर्ग 3, श्लोक 5 / ३-सुवर्णभूमि में कालकाचार्य, पृ० 22 / ४-आवश्यक नियुक्ति, गाथा 256 / ५-सूत्रकृतांग, 1 / 1 / 2 / 15 / ६-आवश्यक नियुक्ति, गाथा 336-337 /