________________ खण्ड : 1, प्रकरण : 5 २-जेन धर्म और क्षत्रिय सूत्रकृतांग में इन्हें 'समवसरण' कहा गया है / ' सूत्रकृतांग के नियुक्तिकार ने इन समवसरणों में समाहृत होने वाले मतवादों की संख्या तीन सौ तिरेसठ बताई है। क्रियावादी मतवाद- 180 अक्रियावादी मतवाद----- 84 विनयवादी मतवाद-- 32 अज्ञानवादी मतवाद...-- G JA 263 इन सब मतवादों और उनके आचार्यो के नाम प्राप्त नहीं हैं, किन्तु जैनों के प्रकीर्णग्रन्थ और बौद्ध एवं वैदिक-साहित्य के संदर्भ में इनके कुछ नामों का पता लगाया जा सकता है। . २-जैन धर्म और क्षत्रिय जैन दर्शन क्रियावादी है। इस विचारधारा ने बहुत व्यक्तियों को प्रभावित किया था। उतराध्ययन में उन व्यक्तियों की एक लम्बो तालिका है, जो इस क्रियावादी विचारधारा से प्रभावित होकर श्रमण बने थे। क्षत्रिय राजा. ब्राह्मण (1) विदेहराज नमि (अ०६) (1) भृगु (अ०१४) (2) इषुकार (अ०१४) (2) यशा (अ०१४) (3) कमलावती रानी (अ०१४) (3) दो भृगु पुत्र (अ०१४) (4) संजय (अ०१८) (4) गौतम (अ०२४) (5) एक क्षत्रिय (अ०१८) (5) जयघोष (अ०२५) (6) गद्दमालि (अ०१८) (6) विजयघोष (अ०२५) (7) भरत चक्रवर्ती (अ०१८) (7) गर्ग (अ०२७) १-सूत्रकृातांग, 1 / 12 / 1 / २-वहीं, नियुक्ति, गाथा 116 : असियसयं किरियाणं अक्किरियाणं च होइ चुलसीती। अन्नाणियं सतही वेणइयाणं च बत्तीसा // ३-(क) षटखण्डागम, खण्ड 1, भाग 1, पुस्तक 2, पृ० 42 / (ख) तत्त्वार्थवार्तिक 8 / 1, पृ० 652 / (ग) देखिए-उत्तराध्ययन, 18 / 23 का टिप्पण। ४-उत्तराध्ययन, 18 / 33 /