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________________ उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन (8) सगर चक्रवर्ती (अ०१८) वैश्य (9) मघवा चक्रवर्ती (अ०१८) (1) संभूत (अ०१३) (10) सनत्कुमार चक्रवर्ती (अ०१८) (2) अनाथी (अ०२०) (11) शान्ति चक्रवर्ती और तीर्थङ्कर (अ०१८) (3) समुद्रपाल (अ०२१) (12) कुन्थु तीर्थङ्कर (अ०१८) चाण्डाल (13) अर तीर्थङ्कर (अ०१८) (1) हरिकेशबल (अ०१२) (14) महापद्म चक्रवर्ती (अ०१८) (2) चित्र (अ० 1.3) (15) हरिपेण चक्रवर्ती (अ०१८) (3) संभूत (पूर्वजन्म) (अ०१३)' (16) जय चक्रवर्ती (अ०१८) (17) दशार्णभद्र (अ०१८) (18) करकण्डू (अ०१८) (16) द्विमुख (अ०१८) (20) नम जित् (अ०१८) (21) उद्रायण (अ०१८) (22) काशीराज (अ०१८) (23) विजय (अ०१८) (24) महाबल (अ०१८) (25) मृगापुत्र (अ०१६) (26) अरिष्टनेमि (अ०२२) (27) राजीमती (अ०२२) (28) रथनेमि (अ०२२) (26) केशी (अ०२३) इस तालिका के अध्ययन से हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि इस क्रियावादी ( या आत्मवादी ) विचारधारा ने क्षत्रियों को अधिक प्रभावित किया था। इतिहास की यह विचित्र घटना है कि जो धारा क्षत्रियों से उद्भूत हुई और सभी जातियों को प्रभावित करतो हुई भी उनमें सतत प्रवाहित रही, वही धारा आगे चल कर केवल वैश्य-वर्ग में सिमट गई। समग्र आगमों के अध्ययन से हम जान पाते हैं कि निर्ग्रन्थ-संघ में हजारों ब्राह्मण, वैश्य और शूद्र निर्ग्रन्थ थे। किन्तु उनमें प्रचुरता क्षत्रियों की ही थी। इस प्रसंग में हमें इस विषय पर संक्षिप्त विवेचन करना है कि जैन-धर्म केवल वैश्य-वर्ग में सीमित क्यों हुआ?
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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