________________ प्रकरण : पाँचवाँ १-महावीर कालीन मतवाद भगवान् महावीर का युग धार्मिक मतवादों की जटिलता का युग था / बौद्ध-साहित्य में 62 धर्म मतवादों का विवरण मिलता है / ' सामञफलसुत्त में छह तीर्थङ्करों का उल्लेख है। उनमें पाँचवें तीर्थङ्कर निग्गंठ नातपुत्त अर्थात् भगवान् महावीर हैं / उनके मत का चातुर्याम संवर के रूप में उल्लेख किया गया है। अजातशत्रु भगवान् बुद्ध से कहता है__"भन्ते ! एक दिन मैं जहाँ निग्गंठ नाथपुत्त थे, वहाँ गया। जाकर निगंठ नाथपुत्त के साथ मैंने संमोदन किया :-'क्या भन्ते ! श्रामण्य के पालन करने का फल इसी जन्म में प्रत्यक्ष बतलाया जा सकता है।' ऐसा कहने पर भन्ते ! निग्गंठ नाथपुत्त ने यह उत्तर दिया--'महाराज ! निग्गंठ चार (प्रकार के) संवरों से संवृत्त (=आच्छादित,संयत) रहता है / महाराज ! निग्गंठ चार संवरों से कैसे संवृत रहता है ? महाराज ! (1) निग्गंठ (=निम्रन्थ) जल के व्यवहार का वारण करता है (जिसमें जल के जीव न मारे जावें), (2) सभी पापों का वारण करता है, (3) सभी पापों के वारण करने से धुतपाप (=पाप-रहित) होता है, (4) सभी पापों के वारण करने में लगा रहता है। महाराज ! निग्गंठ इस प्रकार चार संवरों से संवृत्त रहता है। महाराज ! क्योंकि निग्गंठ इन चार प्रकार के संवरों से संवृत रहता है, इसीलिए वह निर्ग्रन्थ, गतात्मा (=अनिच्छुक ), यतात्मा (संयमी) और स्थितात्मा कहलाता है' ___ "भन्ते ! प्रत्यक्ष श्रामण्य फल के पूछे० निग्गंट नातपुत्त ने चार संवरों का वर्णन किया। भन्ते ! तब मेरे मन में यह हुआ 'कैसे मुझ जैसा 0 / ' भन्ते ! सो मैंने 0 / 0 उठ कर चल दिया / 2 यह संवाद वास्तविकता से दूर है। भगवान् महावीर चातुर्याम-संवर के प्रतिपादक नहीं थे। पार्श्वनाथ के चातुर्याम-धर्म को भ्रमवश निर्ग्रन्थ ज्ञात-पुत्र का चातुर्याम-संवर कहा गया है। लगता है कि संगीति में सम्मिलित बौद्ध भिक्षु भगवान् पार्श्व के चातुर्याम १-दीघनिकाय, 111, पृ० 5-15 / २-वही, 12, पृ० 21 /