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________________ खण्ड 1, प्रकरण : 4 आत्म-विद्या-क्षत्रियों की देन नहों, ब्राह्मणों के गढ़ कुरु पंचाल के खिलाफ भी जगी और वैदिक-सभ्यता के बाद वह समय आ गया जब इज्जत कुरु पंचाल की नहीं, बल्कि मगध और विदेह की होने लगी। कपिलवस्तु में जन्म लेने के ठोक पूर्व जब तथागत स्वर्ग में देवयोनि में विराज रहे थे, तब की कथा है कि देवताओं ने उनसे कहा कि अब आपका अवतार होना चाहिए, अतएव आप सोच लीजिए कि किस देश और किस कुल में जन्म-ग्रहण कीजिएगा। तथागत ने सोच समझ कर बताया कि महाबुद्ध के अवतार के योग्य तो मगध देश और क्षत्रिय-वंश ही हो सकता है / इसी प्रकार भगवान् महावीर वर्धमान भी पहले एक ब्राह्मणी के गर्भ में आए थे। लेकिन इन्द्र ने सोचा कि इतने बड़े महापुरुष का जन्म ब्राह्मण-वंश में कैसे हो सकता है ? अतएव उसने ब्राह्मणी का गर्भ चुरा कर उसे एक क्षत्राणी की कुक्षी में डाल दिया। इन कहानियों से यह निष्कर्ष निकलता है कि उन दिनों यह अनुभव किया जाने लगा था कि अहिंसा-धर्म का महाप्रचारक ब्राह्मण नहीं हो सकता, इसलिए बुद्ध और महावीर के क्षत्रिय-वंश में उत्पन्न होने की कल्पना लोगों को बहुत अच्छी लगने लगी।" उक्त अवतरणों व अभिमतों से ये निष्कर्ष हमें सहज उपलब्ध होते हैं(१) आत्म-विद्या के आदि-स्रोत तीर्थङ्कर ऋषभ थे। (2) वे क्षत्रिय थे। (3) उनकी परम्परा क्षत्रियों में बराबर समादृत रही। (4) अहिंसा का विकास भी आत्म-विद्या के आधार पर हुआ। (5) यज्ञ-संस्था के समर्थक ब्राह्मगों ने वैदिक-काल में आत्म-विद्या को प्रमुखता नहीं दी। . (6) आरण्यक व उपनिषद्-काल में वे आत्म-विद्या की ओर आकृष्ट हुए। (7) क्षत्रियों के द्वारा उन्हें वह (आत्म-विद्या) प्राप्त हुई। . १-संस्कृति के चार अध्याय, पृ० 109-110 / 12
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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