________________ 88 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन पूर्ण नहीं कि विशुद्ध क्षत्रिय-परम्परा पूर्णतः विलीन हो गई थी या अत्यधिक भ्रष्ट हो गई या जो वर्तमान में है, वह मौलिक नहीं। ब्राह्मण अपने धार्मिक व्याख्याओं को सुरक्षित रख सके व उनका पालन कर सके हैं तो क्षत्रियों के सम्बन्ध में इससे विपरीत मानना अविचारपूर्ण है। क्षत्रिय-परम्परा में भी ऐसे व्यक्ति थे, जिनका मुख्य कार्य ही परम्परा को सुरक्षित रखना था। "क्षत्रिय व ब्राह्मण-परम्परा का अन्तर महत्त्वपूर्ण है और स्वाभाविक भी।...यदि क्षत्रिय-परम्परा का अस्तित्व नहीं होता तो वह आश्चर्यजनक स्थिति होती। ब्राह्मण व क्षत्रिय-परम्परा की भिन्नता प्राचीनतम काल से पुराणों के संकलन व पौराणिक ब्रह्मणों का उन पर अधिकार होने तक रही।"१ वस्तुतः क्षत्रिय-परम्परा ऋग्वेद-काल से पूर्ववर्ती है। उपनिषद्-काल में क्षत्रिय ब्राह्मणों का पद छीन लेने को उद्यत नहीं थे ; प्रत्युत ब्राह्मणों को आत्म-विद्या का ज्ञान दे रहे थे / जैसा कि डा० उपाध्याय ने लिखा है- "ब्राह्मणों के यज्ञानुष्ठान आदि के विरुद्ध क्रान्तिकर क्षत्रियों ने उपनिषद्-विद्या की प्रतिष्ठा की और ब्राह्मणों ने अपने दर्शनों की नींव डाली। इस संघर्ष का काल प्रसार काफी लम्बा रहा जो अन्ततः द्वितीयं शती ई० पू० में ब्राह्मणों के राजनीतिक उत्कर्ष का कारण हुआ। इसमें एक ओर तो वशिष्ठ, परशुराम, तुरकावषेय, कात्यायन, राक्षस, पतंजलि और पुष्यमित्र शुंग की परम्परा रही और दूसरी ओर विश्वमित्र, देवापि, जनमेजय, अश्वपति, कैकेय, प्रवहण, जैबलिअजातशत्रु, कौशेय, जनक विदेह, पार्श्व, महावीर, वुद्ध और वृहद्रथ की।" 2 आत्म-विद्या और अहिंसा अहिंसा का आधार आत्म-विद्या है। उसके बिना अहिंसा कौरी नैतिक बन जाती है, उसका आध्यात्मिक मूल्य नहीं रहता। ____ अहिंसा और हिंसा कभी ब्राह्मण और क्षत्रिय-परम्परा की विभाजन रेखा थी। अहिंसा प्रिय होने के कारण क्षत्रिय जाति बहुत जनप्रिय हो गई थी जैसा की दिनकर ने लिखा है-"अवतारों में वामन और परशुराम, ये दो ही हैं जिनका जन्म ब्राह्मण-कुल में हुआ था। बाकी सभी अवतार क्षत्रियों के वंश में हुए हैं। वह आकस्मिक घटना हो सकती है, किन्तु इससे यह अनुमान आसानी से निकल आता है कि यज्ञों पर पलने के कारण ब्राह्मण इतने हिंसा-प्रिय हो गये थे कि समाज उनसे घृणा करने लगा और ब्राह्मणों का पद उन्होंने क्षत्रियों को दे दिया। प्रतिक्रिया केवल ब्राह्मण धर्म (यज्ञ) के प्रति ही 2-Ancient Indian Historical Tradition, p. 5,6. २-संस्कृति के चार अध्याय, पृ० 110 /