________________ उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन प्रवाहण-क्या तू जानता है कि पाँचवीं आहुति के हवन कर दिए जाने पर आप (सौम, घृतादि रस) पुरुष संज्ञा को कैसे प्राप्त होते हैं ? ___ श्वेतकेतु-नहीं, भगवन् ! नहीं। तो फिर तू अपने को 'मुझे शिक्षा दी गई है' ऐसा क्यों बोलता था ? जो इन बातों को नहीं जानता, वह अपने को शिक्षित कैसे कह सकता है ? तब वह त्रस्त होकर अपने पिता के स्थान पर आया और उससे बोला-"श्रीमान् ने मुझे शिक्षा दिए बिना हो कह दिया था कि मैंने तुम्हें शिक्षा दे दी है। उस क्षत्रिय बन्धु ने मुझ से पाँच प्रश्न पूछे थे, किन्तु मैं उनमें से एक का भी विवेचन नहीं कर सका।" उसने कहा-"तुमने उस समय ( आते ही ) जैसे ये प्रश्न मुझे सुनाएँ हैं, उनमें से मैं एक को भी नहीं जानता / यदि मैं इन्हें जानता तो तुम्हें क्यों नहीं बतलाता ?" __ तब वह गौतम राजा के स्थान पर आया और उसने अपनी जिज्ञासाएँ राजा के सामने प्रस्तुत की। राजा ने उसे चिरकाल तक अपने पास रहने का अनुरोध किया और कहा"गौतम ! जिस प्रकार तुमने मुझ से कहा है, पूर्व-काल में तुमसे पहले यह विद्या ब्राह्मणों के पास नहीं गई। इसी से सम्पूर्ण लोकों में क्षत्रियों का ही (शिष्यों के प्रति) अनुशासन होता रहा है।" बृहदारण्यक उपनिषद् में भी राजा प्रवाहण आरुणि से कहता है-"इससे पूर्व यह विद्या (अध्यात्म-विद्या) किसी ब्राह्मण के पास नहीं रही। वह मैं तुम्हें बताऊंगा।"२ उपमन्यु का पुत्र प्राचीनशाल, पुलुष का पुत्र सत्ययज्ञ, मल्लवि के पुत्र का पुत्र इन्द्रद्युम्न, शर्करक्ष का पुत्र जन और अश्वतराश्व का पुत्र वडिल-ये महागृहस्थ और परम श्रोत्रिय एकत्रित होकर परस्पर विचार करने लगे कि हमारा आत्मा कौन है और हम क्या हैं ? उन्होंने निश्चय किया कि अरुण का पुत्र उद्दालक इस समय वैश्वानर आत्मा को जानता है, अतः हम उसके पास चलें। ऐसा निश्चय कर वे उसके पास आए। उसने निश्चय किया कि ये परम श्रोत्रिय महागृहस्थ मुझ से प्रश्न करेंगे, किन्तु मैं इन्हें पूरी तरह से बतला नहीं सकूँगा / अतः मैं इन्हें दूसरा उपदेष्टा बतला दूँ। १-छान्दोग्योपनिषद्, 5 // 3 // 1-70, पृ० 472-476 / २-बृहदारण्यकोपनिषद्, 6 / 2 / 8 : पथेयंविद्यतःपूर्व न कश्मिश्चन ब्राह्मण उवास तां त्वहं तुभ्यं वक्ष्यामि /