________________ 82 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन गति, निरुक्त, व्याकरण, कल्प और शिक्षा का भी अध्ययन किया है तो भी मैं आकाश आदि पाँचों महाभूतों के उपादान कारण को न जान सका / तत्त्वज्ञान होने पर कौन-सा फल प्राप्त होता है ? कर्म करने पर किस फल की उपलब्धि होती है ? देहाभिमानी जीव देह से किस प्रकार निकलता है और फिर दूसरे शरीर में प्रवेश कैसे करता है ? ये सारी बातें भी मुझे बताएँ।" __ इसी प्रकार नारद सनत्कुमार से कहता है- "भगवन् ! मुझे उपदेश दें।" तब सनत्कुमार ने कहा-"तुम जो जानते हो वह मुझे बतलाओ, फिर उपदेश दूंगा।" तब नारद ने कहा-"भगवन् ! मुझे ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद याद हैं। इतिहास, वेदों के वेद (व्याकरण), श्राद्ध-कल्प, गणित, उत्पात-ज्ञान, निधिशास्त्र, तर्कशास्त्र, नीति, देव-विद्या, ब्रह्म-विद्या, भूत-विद्या, क्षत्र-विद्या, सर्प-विद्या और देवजन-विद्या (नृत्य, संगीत आदि) को मैं जानता हूँ।"२ सब वेदों को जान लेने पर भी आत्म-विद्या का ज्ञान नहीं होता था, उसका कारण मुण्डकोपनिषद् से स्पष्ट होता है / शौनक ने अंगिरा के पास विधि-पूर्वक जाकर पूछा-"भगवन् ! किसे जानने पर सब कुछ जान लिया जाता है ?" अंगिरा ने कहा-"दो विधाएँ हैं-एक 'परा' और दूसरो 'अपरा'। ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद, शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द और ज्योतिष—यह 'अपरा' है तथा जिससे उस अक्षर परमात्मा का ज्ञान होता है, वह 'परा' है।"3 ___ इस 'परा' विद्या को वेदों से पृथक् बतलाने का तात्पर्य यही हो सकता है कि वैदिक ऋपि इसे महत्त्व नहीं देते थे। श्रमण-परम्परा और क्षत्रिय श्रमण-परम्परा में क्षत्रियों की प्रमुखता रही है और वैदिक-परम्परा में ब्राह्मणों की। भगवान् महावीर का देवानन्दा की कोख से त्रिशला क्षत्रियाणी की कोख में संक्रमण किया गया, यह तथ्य श्रमण-परम्परा सम्मत क्षत्रिय जाति की श्रेष्ठता का सूचक है।४ महात्मा बुद्ध ने कहा था-"वाशिष्ठ ! ब्रह्मा सनत्कुमार ने भी गाथा कही है १-महाभारत, शान्तिपर्व, 201 / 7,8,9 / २-छान्दोग्योपनिषद्, 7 / 1 / 1,2 / ३-मुण्डकोपनिषद्, 1 / 1 / 3-5 / ४-कल्पसूत्र, 20-25 //