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________________ खण्ड 1, प्रकरण : 4 श्रमण और वैदिक-परम्परा की पृष्ठ-भूमि 81 शेष 81 पुत्र महाश्रोत्रिय, यज्ञशील और कर्म-शुद्ध ब्राह्मण बने। उन्होंने कर्म-तन्त्र का प्रणयण किया। ___ भगवान् ऋषभ ने आत्म-तंत्र का प्रवर्तन किया और उनके 81 पुत्र कर्म-तन्त्र के प्रवर्तक हुए / ये दोनों धाराएं लगभग एक साथ ही प्रवृत्त हुई। यज्ञ का अर्थ यदि आत्मयज्ञ किया जाए तो थोड़ी भेद-रेखाओं के साथ उक्त विवरण का संवादक प्रमाण जैनसाहित्य में भी मिलता है. और यदि यज्ञ का अर्थ वेद-विहित यज्ञ किया जाए तो यह कहना होगा कि भागवतकार ने ऋषभ के पुत्रों को यज्ञशील बता यज्ञ को जैन-परम्परा से सम्बन्धित करने का प्रयत्न किया है। आत्म-विद्या भगवान् ऋषभ द्वारा प्रवर्तित हुई। उनके पुत्रों-वातरशन श्रमणोंद्वारा वह परम्परा के रूप में प्रचलित रही / श्रमण और वैदिक-धारा का संगम हुआ तब प्रवृत्तिवादी वैदिक आर्य उससे प्रभावित नहीं हुए किन्तु श्रमण-परम्परा के अनुयायी असुरों को धृति, आत्म-लीतता और अशोक-भाव को देखा तो वे उससे सहसा प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके। वेदोत्तर युग में आत्म-विद्या और उसके परिपार्श्व में विकसित होने वाले अहिंसा, मोक्ष आदि तत्त्व दोनों धाराओं के संगम-स्थल हो गए। वैदिक-साहित्य में श्रमण-संस्कृति के और श्रमण-साहित्य में वैदिक-संस्कृति के अनेक संगम-स्थल हैं। यहाँ हम मुख्यतः आत्म-विद्या और उसके परिपार्श्व में अहिंसा की चर्चा करेंगे। आत्म-विद्या और वेद ___ महाभारत का एक प्रसंग है / महर्षि बृहस्पति ने प्रजापति मनु से पूछा- "भगवन् ! जो इस जगत् का कारण है, जिसके लिए वैदिक कर्मों का अनुष्ठान किया जाता है, ब्राह्मण लोग जिसे ज्ञान का अन्तिम फल बतलाते हैं तथा वेद के मंत्र-वाक्यों द्वारा जिसका तत्त्व पूर्ण रूप से प्रकाश में नहीं आता, उस नित्य वस्तु का आप मेरे लिए यथार्थ वर्णन करें / "मनुष्य को जिस वस्तु का ज्ञान होता है, उसी को वह पाना चाहता है और पाने की इच्छा होने पर उसके लिए वह प्रयत्न आरम्भ करता है, परन्तु मैं तो उस पुरातन परमोत्कृष्ट वस्तु के विषय में कुछ जानता ही नहीं हूँ, फिर पाने के लिए झूठा प्रयत्न कैसे करूँ ? मैंने ऋक्, साम और यजुर्वेद का तथा छन्द का अर्थात् अथर्ववेद का एवं नक्षत्रों की १-श्रीमद्भागवत, 5 / 4 / 9-13 / 11 / 2 / 19-21 / २-आवश्यकनियुक्ति, पृ० 235-236 / ३-महाभारत, शान्तिपर्व, 201 / 4 /
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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