________________ 80 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन ये प्रधान वेदवेत्ता और प्रवृत्ति-धर्मावलम्बी हैं। इन्हें ब्रह्मा द्वारा प्रजापति के पद पर प्रतिष्ठित किया गया। यह कर्म-परायण पुरुषों के लिए शाश्वत मार्ग प्रकट हुआ।' __सन, सनत्, सुजात, सनक, सनंदन, सनत्कुमार, कपिल और सनातन-ये सात ऋषि भी ब्रह्मा के मानस-पुत्र हैं। इन्हें स्वयं विज्ञान प्राप्त है और ये निवृत्ति-धर्मावलम्बी हैं। ये प्रमुख योगवेत्ता, सांख्य-ज्ञान-विशारद, धर्म-शास्त्रों के आचार्य और मोक्ष-धर्म के प्रवर्तक हैं। सप्ततिशतस्थान में बतलाया गया है कि जैन, शैव और सांख्य--ये तीन धर्म-दर्शन भगवान् ऋषभ के तीर्थ में प्रवृत्त हुए थे। इससे महाभारत के उक्त तत्थ्यांश का समर्थन होता है। श्रीमद्भागवत में लिखा है-भगवान् ऋषभ के कुशावर्त आदि नौ पुत्र नौ द्वीपों के अधिपति बने, कवि आदि नौ पुत्र आत्म-विद्या-विशारद श्रमण बने और भरत को छोड़ कर १-महाभारत, शान्तिपर्व, 340 / 66-71 : . मरीचिरङ्गिराश्चात्रिः, पुलस्त्यः पुलहः क्रतुः / वसिष्ठ इति सप्तते, मानसा निर्मिता हि ते // . . एते वेदविदो मुख्या, वेदाचार्याश्च कल्पिताः / प्रवृत्तिधर्मिणश्चैव, प्राजापत्ये प्रतिष्ठिताः // अयं क्रियावतां पन्था, व्यक्तीभूतः सनातनः / अनिरुद्ध इति प्रोक्तो, लोकसर्गकरः प्रभुः // . 2 वही, शान्तिपर्व, 340 / 72-74 : सनः सनत्सुजातश्च, सनकः ससनन्दनः / सनत्कुमारः कपिलः, सप्तमश्च सनातनः // सप्तैते मानसाः प्रोक्ता, ऋषयो ब्रह्मणः सुताः / स्वयमागत विज्ञाना, निवृत्तिं धर्ममास्थिताः // एते योगविदो मुख्याः, सांख्यज्ञानविशारदाः / आचार्या धर्मशास्त्रेषु, मोक्षधर्मप्रवर्तकाः // ३-सप्ततिशतस्थान, 340-341 : जइणं सइवं संखं, वेअंतियनाहिआण बुद्धाणं / वइसेसियाण वि मयं, इमाई सग दरिसणाई कम // तिग्नि उसहस्स तित्थे, जायाई सीअलस्स ते दुन्नि / दरिसण मेगं पासस्स, सत्तमं वीरतित्थंमि // .