________________ 78 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन नाम बन गया।' श्रीमद्भागवत से भी इसी बात की पुष्टि होती है। वहाँ बताया गया है कि वासुदेव ने आठवाँ अवतार नाभि और मेरुदेवी के वहाँ धारण किया। वे ऋषभ रूप में अवतरित हुए और उन्होंने सब आश्रमों द्वारा नमस्कृत मार्ग दिखलाया।' इसीलिए ऋषभ को मोक्ष-धर्म की विवक्षा से 'वासुदेवांश' कहा गया। ___ ऋषभ के सौ पुत्र थे। वे सब के सब ब्रह्म-विद्या के पारगामी थे। उनके नौ पुत्रों को 'आत्म-विद्या विशारद' भी कहा गया है / उनका ज्येष्ठ पुत्र भरत महायोगी था। - जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति, कल्पसूत्र और श्रीमद्भागवत के संदर्भ में हम आत्म-विद्या के प्रथम पुरुष भगवान् ऋषभ को पाते हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि उपनिषद्कारों ने ऋषभ को ही ब्रह्मा कहा हो। ब्रह्मा का दूसरा नाम हिरण्यगर्भ है। महाभारत के अनुसार हिरण्यगर्भ ही योग का पुरातन विद्वान् है, कोई दूसरा नहीं / श्रीमद्भागवत में ऋषभ को योगेश्वर कहा गया है।' १-कल्पसूत्र, सू० 194: उसभेणं कोसलिए कासवगुत्ते णं, तस्स णं पंच नामधिजा एवमाहिज्जंति, तं जहा-उसमे इ वा पढमराया इ वा पढमभिक्खाचरे इ वा पढमजिणे इ वा पढमतित्थकरे इ वा। २-श्रीमद्भागवत, 1 / 3 / 13 : अष्टमे मेरुदेव्यां तु, नाभेर्जात उरुक्रमः। दर्शयन् वर्त्म धीराणां, सर्वाश्रमनमस्कृतम् // ३-वही, 11 / 2 / 16 : तमाहु र्वासुदेवांशं, मोक्षधर्म विवक्षया / ४-वही, 11 / 2 / 16 : अवतीर्णः सुतशतं, तस्यासीद् ब्रह्मपारगम् / ५-वही, 11 / 2 / 20 : नवाभवन् महाभागा, मुनयो ह्यर्थशंसिनः / श्रमणा वातरशनाः, आत्मविद्याविशारदाः // ६-वही, 349: येषां खलु महायोगी भरतो ज्येष्ठः श्रेष्ठगुणः आसीत् / ७-महामारत, शान्तिपर्व, 349 / 65 : हिरण्यगर्भो योगस्य, वेत्ता नान्यः पुरातनः / ८-श्रीमद्भागवत, // 4 // 3: भगवान् ऋषभदेवो योगेश्वरः /