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________________ प्रकरण : चौथा आत्म-विद्या-क्षत्रियों की देन आत्म-विद्या की परम्परा ब्रह्म-विद्या या आत्म-विद्या अवैदिक शब्द है। मुण्डकोपनिषद् के अनुसार सम्पूर्ण देवताओं में पहले ब्रह्मा उत्पन्न हुआ। वह विश्व का कर्ता और भुवन का पालक था। उसने अपने ज्येष्ठ पुत्र अथर्वा को समस्त विद्याओं की आधारभूत ब्रह्म-विद्या का उपदेश दिया / अथर्वा ने अंगिर को, अंगिर ने भारद्वाज-सत्यवह को, भारद्वाज-सत्यवह ने अपने से कनिष्ठ ऋषि को उसका उपदेश दिया। इस प्रकार गुरु-शिष्य के क्रम से वह विद्या अंगिरा ऋषि को प्राप्त हुई।' . बृहदारण्यक में दो बार ब्रह्म-विद्या की वंश-परम्परा बताई गई है। उसके अनुसार पौतिमाष्य ने गौपवन से ब्रह्म-विद्या प्राप्त की। गुरु-शिष्य का क्रम चलते-चलते अन्त में बताया गया है कि, परमेष्ठी ने वह विद्या ब्रह्मा से प्राप्त की। ब्रह्मा स्वयंभू हैं। शंकराचार्य ने ब्रह्मा का अर्थ 'हिरण्यगर्भ' किया है / उससे आगे आचार्य-परम्परा नहीं है, क्योंकि वह स्वयंभू है। मुण्डक और बृहदारण्यक का क्रम एक नहीं है। मुण्डक के अनुसार ब्रह्म-विद्या की प्राप्ति ब्रह्मा से अथर्वा को होती है और बृहदारण्यक के अनुसार वह ब्रह्मा से परमेष्ठी को होती है / ब्रह्मा स्वयंभू है / इस विषय में दोनों एक मत हैं। जैन-दर्शन के अनुसार आत्म-विद्या के प्रथम प्रवर्तक भगवान् ऋषभ हैं। वे प्रथम राजा, प्रथम जिन (अर्हत्), प्रथम केवली, प्रथम तीर्थङ्कर और प्रथम धर्म-चक्रवर्ती थे। * उनके प्रथम जिन' होने की बात इतनी विश्रुत हुई कि आगे चल कर 'प्रथम जिन' उनका एक १-मुण्डकोपनिषद्, 1 / 1 ; 1 / 2 / २-बृहदारण्यकोपनिषद्, 2 / 6 / 1; 4 / 6 / 1-2 / ३-वही, भाज्य, 2 / 3 / 6, पृ० 618 : परमेठी विराट, ब्रह्मणो हिरण्यगर्भात् / ततः परं आचार्यपरम्परा नास्ति / ४-जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति, 2 / 30 : उसहे णामं अरहा कोसलिए पढमराया पढमजिणे पढमकेवली पढमतित्थकरे पढमधम्मवरचक्कवट्टी समुप्पजित्थे /
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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