________________ उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन ___ "यद्यपि परलोक-जीवन के सर्वाधिक स्पष्ट और प्रमुख सन्दर्भ ऋग्वेद के नवम और दशम मण्डल में मिलते हैं, तथापि कभी-कभी इसका प्रथम में भी उल्लेख है। जो कठिन तपस्या (तपस) करते हैं, जो युद्ध में अपने जीवन का मोह त्याग देते हैं (10, 1542.5 अथवा इनसे भी अधिक, जो प्रचुर दक्षिणा देते हैं, ( वही, 3; 1, 1255; 10, 1072) उन्हें ही पुरस्कार स्वरूप स्वर्ग प्राप्त होता है / अथर्ववेद, इस अन्तिम प्रकार . के लोगों को प्राप्त होने वाले पुण्य-फलों के विवरण से भरा है। "स्वर्ग में पहुँच कर मृत व्यक्ति ऐसा सुखकर जीवन व्यतीत करते हैं (10, 14. 1514. 162.5), जिसमें सभी कामनाएँ तृप्त रहती हैं (9. 1139.11), और जो देवों के बीच (10 1414) प्रमुखतः यम और वरुण, इन दो राजाओं की उपस्थिति में व्यतीत होता है (10.147) / यहाँ वह जरावस्था से सर्वथा मुक्त होते हैं (10, 2721) / तेजस्वी शरीर से युक्त होकर वह देवों के प्रियपात्र बन जाते हैं ( 10, 146. 165: 561) / यहाँ वह पिता, माता और पुत्रों को देखते हैं ( अथर्ववेद 6. 1203 ) और अपनी पत्नियों तथा सन्तान से पुनः मिल जाते हैं ( अथर्ववेद 12, 317 ) / यहाँ का जीवन अपूर्णताओं और शारीरिक कष्टों से सर्वथा मुक्त होता है ( 10, 14. ; अथर्ववेद 6, 1203), व्याधियाँ पीछे छूट जाती हैं और हाथ-पैर लूले या लंगड़े नहीं होते ( अथर्ववेद 3, 285 ) / अथर्ववेद और शतपथ ब्राह्मग में अक्सर यह कहा गया है कि परलोक में मृत व्यक्ति शरीर तथा अन्य अवयवों की दृष्टि से सम्पूर्ण होता है। "ऋग्वेद में मृतकों के आनन्दप्रद जीवन को 'मदन्ति' अथवा 'मादयन्ते' जैसे सामान्य आशय के शब्दों से व्यक्त किया गया है (10, 1410. 1514, इत्यादि) / स्वर्गलोक के आनन्दप्रद जीवन का सर्वाधिक विस्तृत विवरण ऋग्वेद (9, 1137.11 ) में मिलता है। वहाँ चिरन्तन प्रकाश और तीव्रगति से प्रवाहित होने वाले ऐसे जल हैं, जिनकी गति निर्बाध होती है (तु० की० तैत्तिरीय ब्राह्मण 3, 12, 29); वहाँ पुष्टिकर भोजन और तृप्ति है ; वहाँ आनन्द, सुख, आह्लाद, और सभी कामनाओं की सन्तुष्टि है / यहाँ अनिश्चित रूप से वर्णित आनन्द की, बाद में प्रेम के रूप में व्याख्या की गई है ( तैत्तिरीय ब्राह्मण 2, 4, 66; तु०की० शतपथ ब्राह्मण 10, 4, 44) और अथर्ववेद (4.342) यह व्यक्त करता है कि स्वर्गलोक में लैंगिक संतुष्टि के प्रचुर साधन उपलब्ध हैं। शतपथ ब्राह्मण के अनुसार वहाँ पहुँचने वाले भाग्यशालियों को प्राप्त सुख पृथ्वी के श्रेष्ठतम व्यक्तियों की अपेक्षा सौ गुने अधिक हैं ( 14, 7, 1323 ) / ऋग्वेद भी यह कहता है कि भाग्यशालियों के स्वर्ग में वीणा का स्वर और संगीत सुनाई पड़ता रहता है (10, 1350); वहाँ के लोगों के लिए सोम, घृत और मधु प्रवाहित होता रहता है (10, 1541) / वहाँ घृत से भरे सरोवर तथा दुग्ध, मधु और मदिरा की नदियाँ बहती हैं ( अथर्ववेद 4,