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________________ 1. बहिरङ्ग परिचय : दशवकालिक और आचारांग-चूलिका 57 पंचकल्प भाष्य और चूला के अनुसार निशीथ के कर्ता चतुर्दशपूर्वी भद्रबाहु हैं।' इसलिए आचाराङ्ग ( चार चूलाओं ) के कर्ता भी वे ही होने चाहिए। यदि हमारा यह अनुमान ठीक है तो आचाराङ्ग का द्वितीय श्रुतस्कन्ध दशवकालिक के बाद की रचना है / आचार्य भद्रबाहु ने, निक्तिकार के अनुसार, आचाराङ्ग के आधार पर प्रथम चार चूलाओं की रचना की है। किन्तु प्रथम चूला के दो अध्ययनों ( पिण्डैषणा और भाषाजात ) की रचना में दशवकालिक का अनुसरण किया है अथवा यों भी माना जा सकता है कि दोनों आचार्यों ने एक ही स्थान ( नवें पूर्व के आचार प्राभृत ) से इन अध्ययनों का विषय चुना, इसलिए इनमें इतना शाब्दिक और आर्थिक साम्य है। इस कल्पना के लिए कुछ आधार भी हैं। दोनों आगमों के इन अध्ययनों में विषय का निर्वाचन न्यूनाधिक मात्रा में हुआ है। आचाराङ्ग की पिण्डषणा में 'संखडि' का एक लम्बा प्रकरण है किन्तु दशवकालिक की पिण्डषणा में उसका उल्लेख तक नहीं है। इसी प्रकार वाक्यशुद्धि अध्ययन में भी बहुत अन्तर है / दोनों आगमों में प्राप्त अन्तर का अध्ययन करने के बाद भी आचाराङ्ग की प्रथम चूला के प्रथम पिण्डैषणा और भाषाजात के निर्माण में दशवकालिक का योग है—इस अभिमत को अस्वीकार नहीं किया जा सकता। दशवकालिक की रचना आचाराङ्ग-चूला से पहले हो चुकी थी, इसका पुष्ट आधार प्राप्त होता है। प्राचीन काल में आचाराङ्ग ( प्रथम श्रुतस्कन्ध ) पढ़ने के बाद उत्तराध्ययन पढ़ा जाता था, किन्तु दशवकालिक की रचना के पश्चात् वह दशवैकालिक के बाद पढ़ा जाने लगा। ... प्राचीन काल में 'आमगंध' ( आचाराङ्ग 1 / 2 / 5 ) का अध्ययन कर मुनि पिण्डकल्पी ( भिक्षाग्राही) होते थे। फिर वे दशवकालिक के पिण्डैषणा के अध्ययन के पश्चात् पिण्डकल्पी होने लगे। यदि आचाराङ्ग-चूला की रचना पहले हो गई होती तो दशवकालिक को यह * स्थान प्राप्त नहीं होता। इससे यह प्रमाणित होता है कि आचाराङ्ग-चूला की रचना दशवकालिक के बाद हुई है। १-(क) पंचकल्प भाज्य, गाथा 23 : आयार दसा कप्पो, ववहारो णवम पुव्वणीसंदो। चारित्त रखणट्ठा, सूयकडस्सुवरि ठवियाई॥ (ख) पंचकल्प चूर्णि: तेण भगवता आयारपकप्प दसाकल्प ववहारा य नवमपुत्व नीसंदभूता निज्जूढा।
SR No.004301
Book TitleDashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1967
Total Pages294
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size16 MB
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