________________ 56 दशवकालिक : एक समीक्षात्मक अध्ययन की रचना का आधार दशवकालिक को माना है और कुछ विद्वान् दशवकालिक के पिण्डैषणा और वाक्यशुद्धि की रचना का आधार आचारांग-चूला को मानते हैं / किन्तु नियुक्तिकार के मत से दोनों आधुनिक मान्यताएँ त्रुटि-पूर्ण हैं। उनके अनुसार आचार-चूला आचारांग के अर्थ का विस्तार है। विस्तार करने वाले आचार्य का नाम सम्भवत: उनको भी ज्ञात नहीं था। इसीलिए उन्होंने आचारांग-चूला को स्थविर-कर्तृक बताया है / 2 दशवैकालिक के निर्वृहक आचार्य शय्यम्भव भी चतुर्दशपूर्वी थे और आचारांग-चूला के कर्ता भी चतुर्दशपूर्वी थे।3।। भगवान् महावीर के उत्तरवर्ती आचार्यों में प्रभव, शय्यम्भव, यशोभद्र, सम्भूतविजय, भद्रबाहु और स्थूलिभद्र-ये छः आचार्य चतुर्दशपूर्वी हैं। इनमें आगमकर्ता के रूप में शय्यम्भव और भद्रबाहु-ये दो ही आचार्य विश्रुत हैं। शय्यम्भव दशवैकालिक के और भद्रबाहु छेद-सूत्रों के कर्ता माने जाते हैं। निशीथ आचारांग की पाँच चूलाओं में से एक है। इसलिए पाँचों चूलाओं का कर्ता एक ही होना चाहिए। चार चूलाओं को एक क्रम में पढ़ा जा सकता है। निशीथ को परिपक्व बुद्धि वाले को ही पढ़ने का अधिकार है।४ इसलिए सम्भव है कि प्रथम चार चूलाओं की एक श्रुत-स्कन्ध के रूप में और निशीथ की स्वतंत्र आगम के रूप में योजना की गई। , . १-देखिये-एनेल्स ऑफ भाण्डारकर ओरिएण्टल रिसर्च इन्स्टीच्युट, जिल्द 17, 1936 में प्रकाशित डॉ० ए० एम० घाटगे का "ए फ्यु पैरेलल्स इन जैन एण्ड बुद्धिस्ट वर्क्स" शीर्षक लेख। २-आचारांग नियुक्ति, गाथा 287 : थेरेहिष्णुग्गहट्ठा सीसहिअं होउ पागडत्थं च / आयारो अत्थो आयारंगेसु पविभत्तो॥ ३-वही गाथा, 287 वृत्ति : 'स्थविरैः' श्रुतवृद्धश्चतुर्दशपूर्वविद्भिर्नियूढानीति / ४-निशीथ-भाष्य चूर्णि, प्रथम विभाग, पीठिका, पृष्ठ 3 : आइल्लाओ चत्तारिचूलाओ कमेणेव अहिज्झति, पंचमी चूला आयारपकप्पो 'ति-वास-परियागस्स आरेण ण विज्जति, ति-वास-परियागस्स वि अपरिणामगस्स अतिपरिणामगस्स वा न विज्जति आधारपकज्यो पुण परिणामगस्स दिज्जति /