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________________ ७-छन्द-विमर्श __कुछ आधुनिक विद्वानों ने दशवकालिक का पाठ-संशोधन किया, उसके साथ-साथ छन्द की दृष्टि से भी पाठ-संशोधन कर डाला। अनुष्टुप् श्लोक के चरणों में सात या नौ अक्षर थे, वहाँ पूरे आठ कर दिए। डा० ल्यूमेन ने ऐसा प्रयल बड़ी सावधानी से किया है, पर मौलिकता की दृष्टि से यह न्याय नहीं हुआ। छन्दों के प्रति आज का दृष्टिकोण जितना सीमित है, उतना पहले नहीं था। वैदिक-काल में छन्दों के एक-दो अक्षर कम या अधिक भी होते थे। किसी छन्द के चरण में एक अक्षर कम होता तो उसके पहले 'निवृत्' और यदि एक अक्षर अधिक होता तो उसके साथ “भूरिक' विशेषण लगा दिया जाता। किसी छन्द के चरण में दो अक्षर कम होते तो उसके साथ 'विराज' और दो अक्षर अधिक होते तो 'स्वराज्य' विशेषण जोड़ दिया जाता / 2 आगम-काल में भी छन्दों के चरणों में अक्षर न्यूनाधिक होते थे। प्रस्तुत आगम में भी ऐसा हुआ है। अगस्त्यसिंह मूलपाठ के पूर्व श्लोक, वृत्त, सुत्त, इन्द्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रोपजाति, इन्द्रोपवज्रा, वैतालिक और गाथा का उल्लेख करते हैं। _अनुष्टुप् के प्रत्येक चरण में आठ-आठ अक्षर होते हैं किन्तु इसके अनुष्टुप् श्लोकों के चरण सात, आठ, नौ और दस अक्षर वाले भी हैं। ____ अगस्त्यसिंह मुनि के अनुसार इसमें द्वयर्ध-श्लोक भी हैं। उन्होंने इसके समर्थन में लौकिक मत का उल्लेख किया है। धम्म-पद का प्रारम्भ द्वयर्ध-श्लोक से ही होता है। वैदिक-काल में भावों पर छन्दों का प्रतिबन्ध नहीं था। भावानुकूल 2, 3, 4, 5, 6, 7 और 8 चरणों के छन्दों का भी निर्माण हुआ है।४ / / १-ऋक् प्रातिशाख्य, पाताल 7 : ____एतन्न्यूनाधिका सैव निचूदूनाधिका भूरिक् / २-शौनक, ऋक् प्रातिशाख्य, पाताल 1712 : विराजेस्तूत्तरस्याहुाभ्यां या विषये स्थिताः / स्वराज्य एवं पूर्वस्य याः काश्चैवं गता ऋचः // ३-देखो-दशवकालिक (भा० 2) 5 // 2 // 15 का टिप्पण, पृष्ठ 302 / ४-आधुनिक हिन्दी-काव्य में छन्द-योजना, पृष्ठ 75 /
SR No.004301
Book TitleDashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1967
Total Pages294
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size16 MB
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