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________________ 1. बहिरङ्ग परिचय : व्याकरण-विमर्श 'अवग्रहमयाचित्वा' और दूसरे पाठ की टीका-'अवग्नहे यस्य तत्तमयाचित्वा' है / ' 'ओग्गहंसि' को सप्तमी का एकवचन माना जाए तो इसका संस्कृत-रूप 'अवनहे' बनेगा और यदि 'ओग्गहंसि' ऐसा पाठ मान कर 'ओग्गह' को द्वितीया का एकवचन तथा 'से' को षष्ठी का एकवचन माना जाए तो इसका संस्कृत-रूप 'अवग्रहं तस्य' होगा। अझोयर ( 5 / 1155) _____टीकाकार 'अज्झोयर' का संस्कृत-रूप 'अध्यवपूरक' करते हैं। यह अर्थ की दृष्टि से सही है पर छाया की दृष्टि से नहीं, इसलिए हमने इसका संस्कृत-रूप 'अध्यवतर' किया है। सन्निहीकामे (6 / 18 ) चूर्णिकारों ने 'सन्निधिकाम' यह एक शब्द माना है / 2 टीकाकार ने 'कामे' को क्रिया माना है। उनके अनुसार 'सन्निहिं कामे' ऐसा पाठ बनता है / अहिज्जगं ( 8 / 46) ___ इसका संस्कृत-रूप 'अधीयानम्' किया गया है। चूर्णि और टीका का आशय यह है कि जो सम्पूर्ण दृष्टिवाद को पढ़ लेता है, वह भाषा के सब प्रयोगों से अभिज्ञ हो जाता है, इसलिए उसके बोलने में लिङ्ग आदि की स्खलना नहीं होती और जो वाणी के सब प्रयोगों को जानता है, उसके लिए कोई शब्द अशब्द नहीं होता। वह अशब्द को भी सिद्ध कर देता है। स्खलना प्रायः वही करता है, जो दृष्टिवाद का अध्ययन पूर्ण १-हारिभद्रीय टीका : (क) पत्र, 167 / (ख) पत्र, 197 // २-(क) अगस्त्य चूर्णि: .. सण्णिधी भणितो, तं कामयतीति—सण्णिधीकामो। (ख) जिनदास चूर्णि, पृष्ठ 220 : . सण्णिहिं कामयतीति सन्निहिकामी। ३-हारिभद्रीय टीका, पत्र 198 : अन्यतरामपि स्तोकामपि 'यः स्यात्' यः कदाचित्संनिधिं 'कामयते' सेवते / ४-(क) अगस्त्य चूर्णि : दिट्टिवादमधिज्जगं—दिद्विवादमज्झयणपरं / (ख) हारिभद्रीय टीका, पत्र 236 : दृष्टिवादमधीयानं प्रकृतिप्रत्ययलोपागमवर्णविकारकालकारकादिवेदिनम् /
SR No.004301
Book TitleDashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1967
Total Pages294
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size16 MB
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