________________ 34 दशवैकालिक : एक समीक्षात्मक अध्ययन रहा है। अतः श्रुत-प्रमाण भी इसके पक्ष में है। इस तरह टीकाकार ने 'अट्टाए' के स्थान में 'अणट्ठाए' शब्द ग्रहण कर अर्थ किया है।' पाणहा ( 3 / 4 ) यह प्राकृत शब्द 'उवाहणा' का संक्षिप्त रूप है। धूवणेत्ति ( 3 / 6) ___ इस शब्द की व्याख्या 'धूपनमिति' और 'धूमनेत्र' इन दो रूपों में की गई है। धूमनेत्र का अर्थ है–धुआँ पीने की नली। जे य कीडपयंगा, जा य कुंथुपिवीलिया ( 4 / 06 ) यहाँ उद्देश का व्यत्यय है। कीट द्वीन्द्रिय, पतंग 'चतुरिन्द्रिय और कुंथु तथा पिपीलिका त्रीन्द्रिय है। इनका क्रमशः उल्लेख होना चाहिए था, परन्तु सूत्र की गति विचित्र होती है और उसका क्रम अतंत्र होता है-तंत्र से नियंत्रित नहीं होता, इसलिए यहाँ ऐसा हुआ है, यह टीकाकार का अभिमत है।3. ___ किन्तु हमारे अभिमत में इस व्यत्यय का कारण छन्दोबद्धता है / सम्भवतः ये दोनों किसी गाथा के चरण हैं, जो ज्यों के त्यों उद्धृत किए गए हैं / से सुहुमं ( ४ासू०११) 'से' शब्द मगध देश में प्रसिद्ध 'अथ' शब्द का वाचक है / / ओग्गहंसि अजाइया (5 / 1 / 18) यह पाठ दो स्थानों पर है—यहाँ और 6 / 13 में। पहले पाठ की टीका १-हारिभद्रीय टीका, पत्र 117 : प्राकृतशैल्या चात्रानुस्वारलोपोऽकारनकारलोपौ च द्रष्टव्यौ, तथा श्रुति प्रामाण्यादिति। २-वही, पत्र 118 : प्राकृतशैल्या अनागतव्याधिनिवृत्तये धूमपानमित्यन्ये व्याचक्षते / ३-वही, पत्र 142 : ये च कीटपतङ्गा इत्यादावुद्देशव्यत्ययः किमर्थम्? उच्यते 'विचित्रा सूत्र गतिरतंत्रः क्रम' इति ज्ञापनार्थम् / ४-वही, पत्र 145 : से शब्दो मागधदेशप्रसिद्धः अथ शब्दार्थः।