________________ दशवैकालिक : एक समीक्षात्मक अध्ययन नहीं कर पाता / दृष्टिवाद को पढ़ने वाला बोलने में चूक सकता है, लेकिन जो उसे पढ़ चुका, वह नहीं चूकता-इस आशय को ध्यान में रख कर चूर्णिकार और टीकाकार ने इसे 'अधीयान' के अर्थ में स्वीकृत किया है। किन्तु इसका संस्कृत-रूप 'अभिज्ञक' होता है। 'अधीयान' के प्राकृत रूप–'अहिज्जंत' और 'अहिज्जमाण' होते हैं / 2 . तमेव (8 / 60) . अगस्त्य चूर्णि और टीका के अनुसार यह श्रद्धा का सर्वनाम. है और जिनदास चूर्णि के अनुसार पर्याय-स्थान का / आचारांग वृत्ति में इसे श्रद्धा का सर्वनाम माना है। चंदिमा ( 8 / 63) ___इसका अर्थ व्याख्याओं में चन्द्रमा है। किन्तु व्याकरण की दृष्टि से चन्द्रिका होता है।५ मय (6 / 1 / 1) मूल शब्द 'माया' है। छन्द-रचना की दृष्टि से 'मा' को 'म' और 'या' को 'य' किया गया है। १-(क) अगस्त्य चूर्णि : अधीतसव्ववातोगत विसारदस्स नत्यि खलितं / (ख) जिनदास चूर्णि, पृष्ठ 289 : अधिज्जियगहणेण अधिज्जमाणस्स वयणखलणा पायसो भवइ, अधिज्जिए पुण निरवसेसे दिद्विवाए सव्वपयोयजाणगत्तणेण अप्पमत्तणेण य वति विक्खलियमेव नत्थि, सव्ववयोगतवियाणया असद्दमवि सदं कुज्जा। २-पाइयसद्दमहण्णव, पृष्ट 121 / . ३-(क) अगस्त्य चूर्णि : तं सद्धं पवज्जासमकालिणिं अगुपालेज्जा। (ख) हारिभद्रीय टीका, पत्र 238 : तामेव श्रद्धामप्रतिपत्तितया प्रवर्द्धमानामनुपालयेत् / ४-अगस्त्य चूर्णि : चन्दिमा चन्द्रमाः। ५.-हेमशब्दानुशासन, 8 / 1 / 185 : चन्द्रिकायां मः / ६-(क) अगस्त्य चूर्णि : मय इति मायातो इति एत्थ आयारस्स ह्रस्सता। सहस्सता य लक्खणविज्जाए अत्थि जधा-ह्रस्वो णपुंसके प्रातिपदिकस्य पराते विसेसेण जधा एत्य 'व' 'वा' सहस्स। (ख) जिनदास चूर्णि, पृष्ठ 301: मयगहगेण मायागहणं मयकारहस्सत्तं बंधाणुलोमकयं / (ग) हारिभद्रीय टीका, पत्र 242 : मायातो-निकृतिरूपायाः।