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________________ ४-मुनि कैसा हो? वनस्पति तथा प्राणि-जगत् के स्वभावों की विचित्रता आज भी आश्चर्यकारक है और इनका स्वतंत्र अध्ययन अपने आप में महत्त्वपूर्ण है। नियुक्तिकार और चूर्णिकार ने श्रमण के अनेक गुणों को स्पष्ट करने के लिए वनस्पति-जगत्, प्राणि-जगत् तथा अन्यान्य चर-अचर पदार्थो के गुणों को छुआ है और उनके माध्यम से श्रमण के जीवन को स्पष्ट करने का सुन्दरतम प्रयास किया है। उन्होंने व्यावहारिक दृष्टान्तों से इस विषय को समझाया है, अत: यह दुरूह विषय भी सरल बन गया है। इसके अध्ययन से श्रमण की चर्या, मानसिक विकास तथा चारित्रिक विकास का स्पष्ट प्रतिबिम्ब सामने आ जाता है। निक्तिकार ने बारह उपमाओं द्वारा भिक्षु का स्वरूप बतलाया है / ' टीकाकार ने एक भिन्न कर्तृक गाथा को उद्धृन करते हुए श्रमण के लिए ग्यारह उपमाएँ प्रस्तुत की हैं / 2 उनमें कई पुनरुक्त भी हैं। 1. वह सप जैसा हो: यहाँ सर्प की तुलना तीन बातों से की गई है : 1. सर्प जैसे एकाग्र-दृष्टि वाला होता है, वैसे ही मुनि भी धर्म में एकाग्र-दृष्टि वाला हो। .. 2. सर्प जैसे पर-कृत बिल में रहता है, वैसे मुनि भी पर-कृत घर में रहे / 3 . 3. सर्प जैसे बिल में झट से प्रविष्ट हो जाता है, वैसे मुनि भी आहार को झट से निगल जाए।४ .. १-दशवकालिक नियुक्ति, गाथा 157 : / उरगगिरिजलणसागरनहयलतरुगणसमो य जो होई / भमरमिगधरणिजलरुहरविपवणसमो जओ समणो // २-हारिभद्रीय टीका, पत्र 83 / ३-जिनदास चूर्णि, पृष्ठ 72 : जहा उरगसमेण होयव्वं, तत्थ एगंतदिद्वित्तणं धम्मं पडुच्च कायव्वं, परकडपरिणिटियासु वसहीसु वसितव्वं / ४-अगस्त्य चूर्णि : बिलमिवपन्नगभूतेण अप्पाणेण आहारवित्ति जहा बिलं पन्नगं नासाएत्ति /
SR No.004301
Book TitleDashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1967
Total Pages294
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size16 MB
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