________________ 166 * दशवकालिक : एक समीक्षात्मक अध्ययन काल में फल भी देते हैं। उसी प्रकार पचन-पाचन भी गृहस्थों की प्रकृति है। साधु पचन-पाचन से दूर रहता है / 2 भ्रमर स्वाभाविक रूप से पुष्पित फूलों से रस लेकर अपने आपको तृप्त कर लेता है, वैसे ही श्रमण भी स्वाभाविक रूप से गृहस्थ के लिए बने हुए भोजन में से कुछ लेकर अपने आपको तृप्त कर लेता है। जैसे—स्वभाव-कुसुमित द्रव्यों को बाधा दिए बिना भ्रमर रस लेते हैं, उसी प्रकार श्रमण भी नागरिकों को बाधा दिए बिना, उनके (नागरिकों) लिए सहज बना हुआ भोजन लेते हैं। १-दशवकालिक नियुक्ति, गाथा 108 : पगई एस दुमाणं जं उउसमयम्मि आगए संते / पुप्फति पायवगणा फलं च कालेण बंधति // २-जिनदास चूर्णि, पृष्ठ 68 / ६-वही, पृष्ठ 68 / ४-वही, पृष्ठ 68-69 /