________________ दशवकालिक : एक समीक्षात्मक अध्ययन 2. द्वांगुल कप्प-जब छाया दो अंगुल चौड़ी हो तब भोजन करना। यह पाचित्तिय 37 के विरुद्ध कर्म था, जिसके अनुसार मध्यान्ह के बाद भोजन निषिद्ध था। 3. गामन्तर कप्प--एक ही दिन में दूसरे गाँव में जाकर दुबारा भोजन करना। यह पाचित्तिय 35 के विरुद्ध कर्म था, जिसके अनुसार अतिभोजन निषिद्ध था। 4. आवास कप्प—एक ही सीमा में अनेक स्थानों पर उपोसथ विधि * करना / यह महावग्ग के नियमों के विरुद्ध था। 5. अनुमति कप्प—किसी कर्म को करने के बाद उसके लिए अनुमति प्राप्त कर __ लेना / यह भी भिक्षु-शासन के विरुद्ध था। 6. आचिण्ण कप्प-रूढ़ियों को ही शास्त्र मान लेना। यह भी उपर्युक्त कोटि का कर्म था। 7. अमथित कप्प—भोजन के बाद छाछ पीना। यह पाचित्तिय 35 के विरुद्ध था, जिसके अनुसार अतिभोजन निषिद्ध था। 8. जलोगिम्पातुम् ताड़ी पीना। यह पाचित्तिय 51 के विरुद्ध था, जिसके अनुसार मादक पेय निषिद्ध था। 6. अदसकम्-निशिदानम्-जिसके किनारे न हों ऐसे कैम्बल या रजाई का उपयोग करना। यह पाचित्तिय 86 के विरुद्ध था, जिसके अनुसार बिना किनारे की चादर निषिद्ध थी। 10. जातरूपरजतम्—सोने और चाँदी का स्वीकार करना। यह निस्सग्गिय पाचित्तिय के १८वे नियम के अनुसार निषिद्ध था। भदन्त यश ने ये सब व्यवहार अधर्मशील बतलाए। उन्हें संघ से बहिष्कृत कर दिया गया।" दशवकालिक में भिक्षु के 62 विशेषण प्राप्त होते हैं, जिनकी सन्दर्भ-सहित तालिका इस प्रकार है.... १-बौद्ध धर्म के 2500 वर्ष, "आजकल" का वार्षिक अंक दिसम्बर, 1956 पृष्ठ 30-31 /