________________ १२-मुनि के विशेषण दशवकालिक में मुनि के लिए अनेक विशेषण प्रयुक्त हुए हैं। वे सब मुनि के मानसिक, वाचिक और कायिक संयम के निर्देशक हैं। कुछ एक विशेषणों से तात्कालिक स्थितियों पर भी पर्याप्त प्रकाश पड़ता है। दसवें अध्ययन में 'निर्जातरूपरजत'- यह विशेषण प्रयुक्त हुआ है : - चत्तारि वमे सया कसाए, धुवजोगी य हवेज्ज बुद्धवयणे / अहणे निज्जायरूवरयए, गिहिजोगं परिवज्जए जे स भिक्खू // (10 / 6) - इसका अर्थ है कि मुनि सोना-चाँदी का संचय न करे। उस समय कई श्रमण सोना-चाँदी का संचय भी करने लग गए थे। कई श्रमण इस प्रवृत्ति को धर्म-सम्मत नहीं मानते थे। चुल्लवम्ग मे उन दस बातों का वर्णन है, जिन्हें वज्जी के भिक्षु करते थे, पर यश की मान्यता थी कि वे धर्म-सम्मत नहीं हैं। उन दस बातों में "जातरूपरजतम्" का भी उल्लेख हुआ है। भिक्षु जिनानन्द ने उन दस बातों की चर्चा करते हुए लिखा है : "चुल्लवग्ग में लिखा है कि वज्जी के भिक्षु दस बातें ( दस वत्थूनि ) ऐसी करते थे जिन्हें काकण्डकपुत्र यश धर्म-सम्मत नहीं मानता था। वह उन्हें अनैतिक और अधर्मपूर्ण मानता था। वज्जी के भिक्षुओं ने यश को 'पटिसारणीय कम्म' का दण्ड देने का आदेश दिया। यश को अपना पक्ष समर्थन करना पड़ा। जनसाधारण के सामने उसने अपनी बात अद्भुत वक्तृत्व-कौशल से रखी। इस पर वज्जियों ने 'उपेक्खणीय कम्म' - नामक दंड उसे सुनाया, जिसका अर्थ था यश का संघ से निष्कासन / उपर्युक्त दस वस्तुएँ चुल्लवग्ग में इस प्रकार से दी गई हैं : 1. सिंगिलोण कप्प-अर्थात् एक खाली सींग में नमक ले जाना। यह ..... पाचित्तिय 38 के विरुद्ध कर्म था, जिसके अनुसार खाद्य संग्रह नहीं करना चाहिए।