________________ 4. चर्यापथ : वाक्शुद्धि 135 "सन्तों ने अच्छे वचन को ही उत्तम बताया है। धार्मिक वचन को ही बोले, न कि अधार्मिक वचन—यह दूसरा है। प्रिय वचन को ही बोले, न कि अप्रिय वचन को—यह तीसरा। सत्य वचन को ही बोले न कि असत्य वचन को यह है चौथा।" तब आयुष्मान् वंगीस ने आसन से उठकर, एक कंधे पर चीवर सम्भाल कर भगवान को हाथ जोड़ अभिवादन कर उन्हें कहा-“भन्ते ! मुझे कुछ सूझता है।" भगवान् ने कहा- "वंगीस ! उसे सुनाओ।" तब आयुष्मान् के सम्मुख अनुकूल गाथाओं में यह स्तुति की: ___ "वह बात बोले जिससे न स्वयं कष्ट पाए और न दूसरे को ही दुःख हो, ऐसी बात सुन्दर है।" आनन्ददायी प्रिय वचन ही बोले। पापी बातों को छोड़ कर दूसरों को प्रिय बचन ही बोले / " ___ “सत्य हो अमृत वचन है, यह सदा का धर्म है। सत्य, अर्थ और धर्म में प्रतिष्ठित संतों ने ( ऐसा ) कहा है।" "बुद्ध जो कल्याण-वचन निर्वाण-प्राप्ति के लिए, दु:ख का अन्त करने के लिए बोलते हैं, वही वचनों में उत्तम है।'' १-सुत्तनिपात, सुभाषित सुत्त, 1-5, पृष्ठ 87-9 / /