________________ 2. अन्तरङ्ग परिचय : साधना के अंग 101 छाता, जूता : जो भिक्षुणी नोरोग होते हुए छाते-जूते को धारण करे, उसे बुद्ध ने पाचित्तिय कहा है।' जूते, खड़ाऊँ और पादुकाओं के विविध विधि-निषेधों के लिए विनय-पिटक (पृष्ठ 204-208) द्रष्टव्य है। भगवान् महावीर ने सामान्यत: जूते पहनने का निषेध किया और स्थविर के लिए चर्म के प्रयोग की अनुमति दी, वैसे ही महात्मा बुद्ध जूता पहने गाँव में जाने का निषेध और विधान दोनों करते हैं। __उस समय षड्वर्गीय भिक्ष जूता पहने गाँव में प्रवेश करते थे। लोग हैरान...... होते थे(०) जैसे काम-भोगी गृहस्थ / बुद्ध ने यह बात कही-"भिक्षुओ ! जूता पहने गाँव में प्रवेश नहीं करना चाहिए। जो प्रवेश करे, उसे दुक्कट का दोष हो।" उस समय एक भिक्षु बीमार था और वह जूता पहने बिना गाँव में प्रवेश करने में असमर्थ था। बुद्ध ने यह बात कही-"भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ बीमार भिक्षु को जूता पहन कर गाँव में प्रवेश करने की।" 3 जैन-परम्परा की भाँति बौद्ध-परम्परा में भी छाते का निषेध और विधान—दोनों मिलते हैं। गन्ध, माल्य आदि : महात्मा बुद्ध माला, गंध, विलेपन, उबटन तथा सजने-धजने से विरत रहते थे।" स्मृतिकार, पुराणकार और धर्मसूत्रकार ब्रह्मचारी के लिए गंध, माल्य, उबटन, अंजन, जूते और छत्र-धारण का निषेध करते हैं / भागवत में वानप्रस्थ के लिए दातुन करने का निषेध किया गया है।" १-विनय-पिटक, पृष्ठ 57 / २,३-वही, पृष्ठ 211 / .. ' ४-वहीं, पृष्ठ 438 / ५-दीघ-निकाय, पृष्ठ 3 / 177-179 / (ख) भागवत, 7 / 12 / 12H अञ्जनाभ्यञ्जनोन्मर्दस्त्र्यवलेखामिषं मधु / स्रग्गन्धलेपालंकारांस्त्यजेयुर्ये धृतव्रताः॥ ७-भागवत, 11 / 18 / 3: केशरोमनखश्मश्रुमलानि बिभृयादतः / न धावेदप्सु मज्जेत, त्रिकालं स्थण्डिलेशयः॥