________________ दशवकालिक : एक समीक्षात्मक अध्ययन ३-लोभ-प्रत्याख्यान ४--अभय ( भय-प्रत्याख्यान ) ५-हास्य-प्रत्याख्यान ३-लोभ-प्रत्याख्यान ४-अभय ५-हास्य-प्रत्याख्यान ३-अचौर्य महाव्रत की भावनाएँ १--विविक्तवास-वसति४ १-अनुवीचि-मितावग्रह-याचन २-अभीक्ष्ण-अवग्रह-याचन५ २-अनुज्ञापित-पान-भोजन ३.-शय्या-समिति ३-अवग्रह का अवधारण १-आचारांग, 2 // 3 // 15 : लोभं परियाणइ से निग्गंथे। मिलाइए-दशवैकालिक, 754 / २-वही, 2 // 3 // 15 : नो भयभीरुए सिया। 'मिलाइए—दशवैकालिक, 7 / 54 / ३.-वही, 2 // 3 // 15: हासं परियाणइ से निगंथे। मिलाइए-दशवकालिक, 7 // 54 / ४-प्रश्नव्याकरण, संवरद्वार 3 : अंतो बहिं च असंजमो जत्य वड्ढती संजयाण अट्ठा वज्जेयन्वो हु उवस्सओ से तारिसए सुत्तपडिकुठे। एवं विवित्तवासवस हिसमितिजोगेण भावितो भवति अंतरप्पा। मिलाइए—दशवैकालिक, 8151,52 / ५-वही, संवरद्वार 3 : जे हणि हणि उग्गहं अणुनविवय गिव्हियव्वं / मिलाइए–दशवकालिक, 6 / 13;8 / 5 / 6- वही, संवरद्वार 3 : पीढफलगसेज्जासंथारगट्टयाए रुक्खो न छिदियव्वो न छेदणेण भेयणेण सेज्जा कारेयव्वा जस्सेव उवस्सते वसेज्ज सेज्जं तत्थेव गवेसेज्जा, न य विसमं समं करेज्जा / भिलाइए-दशवकालिक 8 / 51 /