________________ . 2. अन्तरङ्ग परिचय : साधना के अंग ४-साधारण-पिंड-पात्र लाभ ५-विनय-प्रयोग ४-अभीक्ष्ण-अवग्रह-याचन ५-साधार्मिक के पास से अवग्रह-याचन ४-ब्रह्मचर्य महाव्रत की भावनाएँ १-असंसक्त-वास-वसति १-स्त्रियों में कथा का वर्जन २-स्त्री-जन में कथा-वर्जन २-स्त्रियों के अंग-प्रत्यंगों के अवलोकन का वर्जन ३-स्त्रियों के अंग-प्ररंग और चेष्टाओं के ३-पूर्व-मुक्त-भोग की स्मृति का वर्जन अवलोकन का वर्जन५ . १-प्रश्नव्याकरण, संवरद्वार 3 : . साहारणपिण्डपातलामे भोत्तव्वं संजएण समियं न सायसूपा हिकं, न खलु न वेगितं, न तुरियं, न चवलं, न साहसं, न य परस्स पीलाकर सावज्जं तह भोत्तव्वं जह से ततियवयं न सीदति / मिलाइए--दशवकालिक, अध्ययन 5 / २-वही, संवरद्वार 3 : साहम्मिए विणओ पउजियव्वो, उवकरण पारणासु विणयो पउंजियव्वो दाणगहणपुच्छणासु विणओ पउंजियव्वो, निक्खमणपवेसणासु विणओ पउंजियन्वो, अन्नेसु य एवमादिसु बहुसु कारणसएसु विणओ पउंजियव्वो, विणओवि तवो तवोविधम्मो तम्हा विणओ पउंजियव्वो, गुरुसु साहूसु तवस्सीमु य, विणवो पउंजियव्वो। मिलाइए–दशवैकालिक, अध्ययन 9 / ३-वही, संवरद्वार 4 : इत्थिसंसत्तसंकिलिट्ठा अण्णे वि य उवमाइ अवगासा ते हु वज्जणिज्जा। मिलाइए-दशवैकालिक, 8 / 51,52 / ४-वही, संवरद्वार 4 : णारीजणस्स मज्झे ण कहियव्वा कहा। मिलाइए-दशवैकालिक, 8.52 / ५-वही, संवरद्वार 4 : णारीणं हसिय भणियं ... 'ण चक्खुसा ण मणसा वयसा पत्थेयन्वाई।। मिलाइए.-- दशवैकालिक, 8.53,54,57 / /