________________ . 2. अन्तरङ्ग परिचय : साधना के अंग व्याकरण से एवं दाहिनी ओर आचारांग से प्रत्येक महाव्रत की भावनाएँ दी जा रही है : १-अहिंसा महाव्रत की भावनाएँ १-ईया-समिति १-ईर्या समिति २–अपाप-मन ( मन-समिति )2 २-मन-परिज्ञा ३-अपाप-वचन ( वचन-समिति ) ३-वचन-परिज्ञा ४-एषणा-समिति४ ४-आदान-निक्षेप-समिति ५-आदान-निक्षेप-समिति५ ५.-आलोकित-पान-भोजन २-सत्य महाव्रत की भावनाएँ १-अनुवीचि-भाषण १-अनुवीचि-भाषण २-क्रोध-प्रत्याख्यान . २-क्रोध-प्रत्याख्यान १-प्रश्नव्याकरण, संवरद्वार 1 : ठाणगमणपुणजोगजुंजणजुगंतरणिवाइयाए दीट्ठिएई रियव्वं / मिलाइए—दशवकालिक, 5 // 113 / २-वही. संवरतार 1: ण कयावि मणेण पावएणं पावगं किंचि वि झायव्वं / मिलाइए–दशवैकालिक, 8 / 62 / ३-वही, संवरद्वार 1: . वइए पावियाए पावगं ण किंचि वि भासियव्वं / मिलाइए–दशवैकालिक, 7456 / ४-वही, संवरद्वार 1: आहारएसणाए सुद्धं उञ्छं गवेसियव्वं—अहिंसए संजए सुसाहू। मिलाइए--पाँचवाँ अध्ययन (विशेषतः भोगेषणा का प्रकरण)। ५-बही, संवरद्वार 1: अप्पमत्तेण होइ सययं णिक्खियव्वं य गिणिहयव्वं / मिलाइए-दशवकालिक, 5 // 1185,86 / ६-आचारांग, 2 // 3 // 15 : अणुवीइभासी से निगथे। मिलाइए-दशवकालिक, 7355 / ७-वही, 2 // 3 // 15: कोहं परियाणइ से निगथे। मिलाइए–दशवकालिक, 7.54 /