________________ 78 दशवैकालिक : एक समीक्षात्मक अध्ययन पढमं नाण तओ दया, न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते / एवं चिट्ठइ सव्वसंजए। (गीता 4 / 38) अन्नाणी किं काही ? किं वा नाहिइ छेय पावगं ? // (4 / 10) कालेण निक्खमे भिक्खू, कालेण य पडिक्कमे / अकालं च विवज्जेत्ता, काले कालं समायरे // (5 / 2 / 4) काले / निक्खमणा साधु, नाकाले * साधु निक्खमो। अकालेनहि निक्खम्म, एककंपि बहूजनो // ___. ( कोशिक जातक 226 ) . सव्वे जीवा वि इच्छन्ति, जीविडं न मरिज्जिउं। तम्हा पाणवहं घोरं, निग्गंथा बज्जयंति णं॥ (6 / 10) सब्बा दिसा अनुपरिगम्म चेतसा, नेवज्झगा पियतरमत्तना क्वचि / एवं पियो पुथु अत्ता परेसं, तस्मा न . हिंसे परमत्तकामो // ( संयुत्तनिकाय 1 / 3 / 8 ) उवसमेण हणे कोहं, अक्कोधेन जिने कोधं / (धम्मपद 17 / 3) (8 / 38) थंभा व कोहा व मयप्पमाया, गुरुस्सगासे विणयं न सिक्ख / सो चेव उ तस्स अभूइभावो, फलं व कायस्स वहाय होइ / / . (11) यो सासनं अरहतं अरियानं धम्मजीविनं / पटिक्कोसति दुम्मेधो दिढेि निस्साय पापिकं / फलानि कट्टकस्सेव अत्तघाय फुल्लति // (धम्मपद 12 / 8 )