________________ 1. बहिरङ्ग परिचय : तुलना (जैन, बौद्ध और वैदिक) 76 तहेव असणं पाणगं वा, अन्नानमथो पानानं, विविहं खाइमसाइमं लभित्ता। खादनीयानमथो पि वत्थानं / होही अट्टो सुए परे वा, लद्धा न सन्निधिं कयिरा, न च परित्तसे तानि अलभमानो // तं न निहे न निहावए जे (सुत्तनिपात 52 / 10) स भिक्खू // (108) न य बुग्गहियं कहं कहेज्जा, न य कुप्पे निहुइंदिए पसंते। संजमधुवजोगजुत्ते , उवसंते अविहेडए जे स भिक्खू // .(10 / 10) न च कत्थिता सिया भिक्खू, न च वाचं पयुतं भासेय्य / पागन्भियं न सिक्खेय्य, कथं विग्गाहिकं न कथयेय्य // ( सुत्तनिपात 52 / 16) : जो सहइ हु गामकंटए, अक्कोसपहारतज्जणाओ य / भयभेरवसद्दसंपहासे , समसुहदुक्खसहे य जे . स भिक्खू // (10 / 11) भिक्खुनो विजिगुच्छतो, भजतो रित्तमासनं / रुक्खमूलं सुसानं वा, पब्बतानं गुहासु वा // उच्चावचेसु, सयनेसु, कीवन्तो तत्थ भेरवा / ये हि भिक्खु न वेधेय्य, निग्घोसे सयनासने // ( सुत्तनिपात 54 / 4,5) हत्थसंजए पायसंजए, वायसंजए संजइंदिए / अज्झप्परए सुसमाहियप्पा, सुत्तत्थं च वियाणई जे स भिक्खू // (10 / 15) हत्थसयतो . पादसंयतो, वाचाय संयतो संयतुत्तमो / अज्झत्तरतो समाहितो, एको सन्तुसितो तमाहु भिक्खू // (धम्मपद 25 // 3)