________________ 47 तेमनां संवेदनो कालिदासनी सरखामणोमां ऊभा रही शके तेवां छे (श्लो०१९) / विषय प्रस्तुत करवानी एमनी रीत काव्यात्मक छे जेमके 'गुणवचनद्वात्रिंशिका' (ग्लो०३-१३) / ते ज द्वात्रिंशिकामां (लो 14) मां युद्धनुं वातावरण योग्य शब्दो द्वारा ऊ, करे छे अने (श्लो० 17) मां शरद्नी मधुरताने शब्दोमां गुंजती करे छे / आ० सिद्धसेन व्याजस्तुति अने दृष्टांत अलंकारना चाहक लागे छे / ए ज रीते उपमामूलक अलंकारो पण प्रयोजे छे परंतु पछीना युगना कविओनी जेम एमनो कृति अलंकारना अतिशय भारथी लदाई नथी / तेमनामां माधुर्य देखाय छ अने घणुवलं वैदर्भीरीतिनो आश्रय ले छे / तेमनां उपमानोमां ताजगी छे, ते अंधकारने भमराना पग साथे सरखावे छे, एवां तो घणां उदाहरणो आपी शाकाय / तेमनी रचनाओमां हास्य कटाक्षनी सूझ पण नोधपात्र छ / आ० सिद्धसेन वादीओने श्वान, बग भने अभिनेता गणावे छे अने वादने कुक्कट युद्ध साथे सरखावे छ / वास्तवमा वाद विशे द्वात्रिंशिका रमुज भरेलो छ / आ० सिद्धसेन कवि अने तत्त्वचिंतक छे अने एमना सामर्थ्यवाळा कविओ जैनोमां ओछा छे तेथी ज एमने आठ प्रभावकोमा कवि प्रभावक गणवामां आल्या छ / चादी- . - आ० सिद्धसेननी कृतिओ अने एमना जीवननी रूपरेखा एमनी एक मुखे बादी तरीकेनी प्रतिभाने प्रकाशित करे छ। वादनां जे रहस्यो आ० सिद्धसेने जे उद्घाटित काँ छे / तेज एमनी असामान्य बुद्धिमत्ता प्रगट करवा पूरतां छे / जो के मा - कृतिनुं चरकसंहिता साथे कंडक साम्य छे पण तेमांनुं साणुखरूं