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________________ भने तेनी पूर्वे पण तेना कुळमां पराक्रमी राजामो थयाँ हता। आ राजा मात्र वीर हतो, एटलं ज नहि, राजनीतिनो पण जाणकार हतो, उदारचरित हतो भने शत्रुप्रदेशोने पण समृद्ध बनावतो / तेनी आ पिद्धिमां तेना सचिवोनुं पण सारं एवं प्रदान हतुं / एकंदरे तेनुं शासन शांतिपूर्ण हतुं अने लोको तेने प्रतापे समृद्ध बन्या हता। बे पेढीमो वच्चेनो संघर्ष सतत चाल्यो मावे छे परंतु आ० सिद्धसेनना समयमां ते वघारे प्रबल जणाय छे। दरेक नवा विचार सामे मों फेरवी लेनार सामे (आ० सिद्धसेन ने कालि दासनी जेम ) झझूम, पडघु हतुं / तेमनो मा संघर्ष साहित्यर्नु स्वरूप, शैली अने भाषा अंगेनो जणाय छे / आ० सिद्धसेनना समयमां दिव्य त्रिमूर्तिनो विचार प्रस्थापित थई चूकयो हतो अने ते त्रणे देवनां कार्यों जुदां अंकाइ चूकयां हतां / वैष्णव संप्रदाय सारो जाणीतो बनेलो हतो / मंत्रशक्तिमा विश्वास हतो / स्त्रोओ शङ्गारनां प्रसाधनोनो उपयोग करती। राजामो सचिवोना सहकारमा साम, दाम, दण्ड, भेद तथा गुप्तचरोनो उपयोग करता / विरोधीओने पोताना पक्षना करवा दान अपातां / आ०सिद्धसेनना समयमा नियतिवादी आजीविकोनुं सारं एवं चलण हतुं / भा० सिद्धसेननी कृतिओने आधारे अहीं तेमना समयनु भाछु-झांखं चित्र उपसाववा प्रयत्न कयों छे / बहुमुखी प्रतिभा. . आपणे जीवनमा आपणी आसपास मोटे भागे साधारण माणसो जोइए छीए पण भाग्ये ज कोई प्रतिभासंपन्न व्यक्ति साथे
SR No.004300
Book TitleDwatrinshad Dwatrinshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherVijaylavanyasuri Granthmala
Publication Year1977
Total Pages694
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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