________________ आ• सिद्धसेनना समयनुं चित्र - घणा लेखकोनी कृतिमोमांथी तेमना समयनुं चित्र उपसतुं होय छे / आवी कृतिओ ते युगना रंगो प्रतिबिंबित करे छे जे सूक्ष्म अवलोकनथी देखाई आवे छे / आ० सिद्धसेननी कृतिओ प्रमाणमां ढूंको, अर्थगर्भ अने मोटे भागे तत्त्वचिंतनने विषय बनावे छ / आम छतां तेमां मा• सिद्धसेनना युगनुं वातावरण छेक नथी' आव्युएम न कही शकाय, परंतु बीजा लेखकोनी कृतिओनी तुलनामां आ कृतिमओ ओछी पारदर्शक छ / एक तो एमणे बत्रोश पद्यो- बन्धन स्वीकार्य होवाने कारणे कयाय विस्तार करातो नथी, ज्यां आवी विगतनुं आलेखन वधारे संभवित बने / एवं जणाय छे के मा० सिद्धसेननो युग घणी उथलपाथलोनो युग हशे / पंडितोना एक सामान्य माध्यम तरीके संस्कृत भाषा हजी प्रसिद्धि पामी रही हशे, जेने लीधे अश्वघोष जेवा बौद्ध कविओ भने आ० सिद्धसेन जेवा जैन कविओ संस्कृतमां तेमनी रचनामो करवा प्रेराया हशे / तर्क सुप्रतिष्ठित बनी रह्यो हतो अने * जैनोमां आ० सिद्धसेन पछी तेनो घणो विकास थयो देखाय छे / आ० सिद्धसेननी तर्कप्रीति ए हकीकत परथी घणी जणाई आवे एम छे के आ० सिद्धसेन आगमसाहित्यमां पण जे काह तर्क विरुद्ध होय तेने स्वीकारवा तयार नथी / आ एक युगलक्षण जणाय छे / धर्म ने तत्त्वज्ञान माटे अस्तित्वनो संघर्ष चालतो हतो .मने दरेक धर्मने पोतानुं गौरव टकावी रास्ववा आ संघर्षमाथी पसार थर्बु पडे एम हतुं / जैनधर्मने पण घणा विरोधीओ हता