________________ मा० सिद्धसेन प्रत्यक्ष तथा अनुमाननी व्याख्या वार्षगण्यनी स्वीकारता होय एम जणाय छे / महीं सांख्यदर्शननां अमुक 'पासांने ज स्पर्शवामां आव्यां छे / आ कृतिमा मा० सिटसेने मर्ग भने अन्य तत्वोनो उत्पत्तिनो चर्चा करी छे / सत्व वगेरे गुणा ज्यारे सम अवस्थामां होय तेने प्रकृति कहेवामां आवे छे परंतु ज्यारे. आ समतुला विचलित थाय छे त्यारे सृष्टिनी उत्पत्ति थाय छे / पुरुष आम तो अकर्ता छे ऐक्यने कारणे परन्तु अधिष्ठान शक्किने लीधे कर्ता पण छे। 'सांस्यप्रबोध'मां प्रमाणोनी व्याख्या अपाई छे भने प्रकृति तथा सर्गनुं वर्णन करायु छे / इंद्रियोनां कार्यों पण दर्शावायां छ / सिद्धि, न्तुष्टि भने भूतसर्गर्नु पण आलेखन थयुं छे / आ० सिद्धसेन कोई चोकस कृतिने नजर सामें राखो आलेखन करता होय तेम जणातुं नथी अथवा तो तेमनी नजर सामे जे साहित्य हशे ते आपणने उपलब्ध थतुं नथो तेथी आ कृतिने. मौलिक ग्रंथ जेटलु महत्त्व मछे छे / वैशेषिकदर्शन चौदमो द्वात्रिंशिकामां वैशेषिक दर्शन- आलेखन थयु छ / कणादनां सूत्रोनी जेम ज आ कृतिमां पण धर्मनी चर्चा कराई छ / तेमां द्रव्य, प्रमाग वगेरेनुं आलेखन करायुं छे / वैशेषकोनो परमाणु सिद्धांत पण अहो जोवा मळे छे / द्रयोना उद्भव काळ, दिशा पनि, अविद्या वगेरेनुं पण तेमां आलेखन थयु छ / अदृष्टथी क्रियाओ - थाय छे ए, पण दर्शावायुं छे /