________________ 38 अन्य कोईए युक्तिपूर्वक तत्त्वविचार प्रस्तुत कर्यो नथीं / आपणे जाणोए छीए के दृष्टिवादमा परमत अंगे ऊहापोह करवामां आवेलो। आ० सिद्धसेन पण तेनुं आलेखन करे छे भने तेमां रहेला दोषो तथा विरोध दर्शावे छे / बौद्ध, साख्य भने वैशेषिकनो तो तेमा नामपूर्वक निर्देश छे / छेल्ले मा० सिद्धसेन प्रस्थापित करे छे -- "ननु श्रीवर्धमानस्य वाचो युक्तः परस्परम् / " जैनेतर दर्शनो____ आ० सिद्धसेन दिवाकरे जैन दर्शन उपरांत तेमना समयमां जाणीतां बीजां दर्शनोने पोतानी रीते निरूप्यां छे / तेमां वेदवाद, सांख्य, न्याय, वैशेषिक, संतानवाद (बौद्ध) अने नियतिवाद (आजीविकर्नु) आलेखन करायुं छे / वेदवाद __ नवमी द्वात्रिंशिकाने वेदवाद नाम अपायुं छे / पंडित सुखलालजीए आ द्वात्रिंशिकानो विगते अभ्यास को छे / तेनी शैली वैदिक भाषानुं अनुकरण करे छे / आ द्वात्रिंशिका पर 'श्वेताश्वतर उपनिषद् अने 'भगवद्गीता'नी घणी असर देखाय छे एटलुज नहीं, तेमां वैदिक साहित्यना घगा शब्दो के वाक्यखंडो मुक्तपणे लेवामां आव्या छे / कदाच आ० सिद्धसेनना मनमां एनो जुदो संदर्भ होय / मामांना घणा श्लोकना अर्थघटन मुश्केल छे / केटलाकविचारोना मूल जाणी शकाय एम छे / एवं लागे छे के सिद्धसेन अद्वैतवादनो पुरस्कार करे छे /